हरिवंश राय बच्‍चन की कविता : था तुम्हें मैंने रुलाया

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- हरिवंशराय बच्चन
 
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत मांगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
 
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
 
बूंद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
 
हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह 'निशा निमन्त्रण' से

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