पुस्तक समीक्षा : सिंहासन बत्तीसी, चोर बने कोतवाल

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एम.एम. चन्द्रा 
सातवीं पुतली सिंहासन से निकलकर आती है। लेकिन राजदरबार के सभी लोग सोचते हैं कि इस सिंहासन पर बैठना राजा भोज के लिए बहुत कठिन होता जा रहा है। जो कथाएं अब तक हम सुन चुके हैं वैसे गुण राजा भोज में दिखाई नहीं दे रहे हैं।

‘हे राजन! मैं सातवी पुतली कौमुदी हूं। अब मैं आपको सम्राट विक्रम की एक कथा सुनाने जा रही हूं। कहानी सुनने से पहले, मैं आपको यह भी बताना चाहती हूं कि किसी सिंहासन पर बैठना और उसका नेतृत्व करना दोनों ही बहुत अलग-अगल विचार है। कुछ लोगों को सिंहासन तो मिल जाता है, लेकिन वे उस सिंहासन की मर्यादा को बनाए नहीं रख पाते। लेकिन बहुत से लोगों को योग्य होते हुए भी सिंहासन या उच्च पद नहीं मिलता। किंतु कुछ लोग सिंहासन पर न बैठते हुए भी उनके जैसा काम करते रहते हैं। सम्राट विक्रम एक राज परिवार में जरूर पैदा हुआ किंतु उन्होंने अपनी चमक स्वयं पैदा की। इसलिए यदि आप भी इस सिंहासन को ग्रहण करना चाहते हैं, तो अपने अतीत में झांककर देखो कि क्या आपने विक्रम जैसे कार्य किए हैं?
 
‘हे राजा भोज! मैं भी तुम्हें विक्रम की एक कथा सुनाती हूं।’
 
एक समय की बात है। पूरा राज्य सुख-शांति से चैन की सांस ले रहा था। एक दिन रात के समय विक्रम की अचानक आंख खुल गई। विक्रम ने महसूस किया कि  किसी के जोर-जोर से रोने की आवाज आ रही है।
 
विक्रम महल से बाहर आया और उस दिशा की और चलने लगा जिस दिशा से रोने की आवाज आ रही थी। थोड़ी ही दूर चलने पर उसने एक महिला को जोर-जोर से रोते हुए देखा। वह अपने मरे हुए पति के पास बैठकर रो रही थी।
 
विक्रम ने उससे पूछा - ‘तुम्हारी ऐसी दशा का जिम्मेदार कौन है? मुझे बताओ। मुझे विस्तारपूर्वक बताओ, मैं राजा विक्रम हूं। तुम्हारी यथासंभव सहायता करूंगा।’
 
‘हे राजन! मेरा पति एक चोर था और रात्रि में चोरी किया करता था, जिसकी वजह से आपके सैनिकों ने उसे पकड़कर सूली पर चढ़ा दिया।’ स्त्री ने जोर से रोते हुए कहा।
 
‘चोरी करना एक संगीन अपराध है। अपराधी को तो सजा मिलती ही है। अगर तू मेरे पास पहले आ जाती तो मैं तेरे पति के बारे में दयालु भाव से विचार करता।’ विक्रम ने निराशा भरे स्वर में कहा।
 
विक्रम की बात सुनकर स्त्री और जोर-जोर से रोने लगी।
 
‘हे राजन! चोरी करना अपराध है किंतु आपने कभी सोचा है कि व्यक्ति चोरी क्यों करता है? कुछ लोगों के पास बहुत धन दौलत है और कुछ लोगों के पास कुछ भी नहीं।’ महिला ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा। ‘आप के राज्य में सभी खुशहाल नजर आते हैं, जब सभी खुश है तो चोरी क्यों होती है महाराज? जाहिर है कि राज्य में भी अभी भी बहुत से लोग है जो अभावों में जीते हैं। उनके पास न कोई काम है, न खेती करने लायक जमीन।’
 
सम्राट विक्रम उस महिला की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उस महिला को दरबार में लाया गया। एक बार फि‍र अपने दरबारियों से इस विकट समस्या के  बारे में वार्ता की।
‘हमने तो सभी गरीबों के लिए काम और खेती की व्यवस्था की थी फिर राज्य में ये सब क्या हो रहा है?’ विक्रम ने सवाल किया।
 
‘हे राजन! हमने गरीबों के लिए तो योजनाएं बनाई लेकिन चोरों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की थी। क्योंकि उनको राज्य की प्रजा में शामिल नहीं किया गया था। वे हमारे सम्मुख कभी नहीं आते थे। और जब आते तो किसी-न-किसी चोरी के मामले में पकड़े जाते थे। तब तो उनको सजा दी जाती थी।’ दरबारी ने कहा।
‘तुम धन्य हो स्त्री! तुमने अपने राज्य और राजा की सच्चाई को हमारे समाने रखा’ विक्रम ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहता है।
 
 ‘सेनापति! मेरा यह आदेश है कि आज के बाद किसी भी गरीब को मौत की सजा नहीं दी जाएगी। सच्चाई के लिए फिर से आकड़ें जुटाए जाएं।’ राजा ने कहा।
 
‘हे राजन! हर बार की तरह फि‍र आपके राज्य में गरीबों के आंकड़े इकट्ठे किए जाएंगे, तब काम होगा। तब तक उन गरीबों का क्या होगा जो मेरे पति की तरह गरीबी, सैनिकों और राजा के डर से भागे-भागे फि‍र रहे हैं?’ स्त्री ने राजा के फैसले पर ऐतराज करते हुए कहा।
 
‘तो तुम क्या चाहती हो?’ विक्रम ने उस स्त्री से कहा।
 
‘हे राजन! मेरा मानना है कि आपके सभी सैनिकों, गुप्तचरों से ज्यादा राज्य की सूचनाएं मेरे पति जैसे लोगों के पास है। यदि राज्य की सूचनाएं मेरे पति जैसे लोगों के पास हैं तो उनको राज्य की भलाई के काम में लगाया जाए। वे राज्य को और अधिक यश कीर्ति दिला सकते हैं।’ महिला ने विक्रम को जवाब देते हुए कहा।
 
‘राजा विक्रम ने महिला की बात को स्वीकार करते हुए निर्देश जारी किया। हे महामंत्रा उन जैसे लोगों को तुरंत राज्य की भलाई के कार्यों में शामिल किया जाए।’
कुछ दिनों बाद राज्य में भयानक बाढ़ आ गई, जिसके कारण राज्य को बड़े पैमाने पर तबाही झेलनी पड़ी। राज्य की जनता दाने-दाने को मोहताज होने लगी, समस्त राज्य में हाहाकार-सा मच गया। राजा विक्रम को इस समस्या से निपटने का कोई भी समाधन नहीं दिख रहा था।
 
विक्रम, राज्य के सभी शुभ-चिंतकों से इस समस्या का समाधान पूछ रहा था। तभी अचानक उसको उस महिला की याद आई, कि जब राज्य में सबसे कठिन समय हो तो आप उन चोरों से (जो अब राज्य के गुप्तचरों में शामिल किए जा चुके थे) बात जरूर करें।
 
सम्राट विक्रम अपने सैनिकों द्वारा उन गुप्तचरों को बुलाया ।
‘देखों भाइयों! हमारा राज्य कठिन समय से गुजर रहा है। आप लोगों के पास यदि कोई उपाय हो तो बताओ।’ विक्रम ने कहा।
‘हे राजन! हम सब समझते है। किंतु क्या वाकई आप इस समस्या को दूर करना चाहते हैं।’ उनमें से एक व्यक्ति ने कहा।
 
‘हां! क्यों नहीं? क्या हम अपनी जनता को यूंही मरते देखते रहेंगे।’ विक्रम ने कहा।
 ‘हे राजन! हम जैसा कहे उस पर तुरंत अमल करना वरना बहुत देर हो जाएगी।’ उनमें से एक व्यक्ति ने कहा।
 
‘यदि उचित हुआ तो यकीन मानो शीघ्र ही आपकी बातों पर अमल किया जाएगा।’ विक्रम ने कहा।
‘हे राजन! आपने देखा होगा कि इस विपदा की घड़ी में भी सिर्फ गरीब ही भूखा मर रहा है। राजमहल के दरबारी, राजशाही नोकर, साहूकार और जमीदार को किसी भी समस्या का समाना करना नहीं पड़ रहा है। यहां तक कि साहूकार तो इस विपदा की घड़ी में भी और अधिक पैसा कमा रहे हैं। राजमहल से जुड़े बहुत से लोगों ने अनाज के भंडार साल भर तक के लिए जमा कर लिया है। उन्होंने अनाज के भंडार को अन्य राज्यों में बेचने के लिए भी जमा कर रखा है।’
 
‘हे राजन! सबसे पहले इन लोगों द्वारा अन्न बेचने पर रोक लगानी चाहिए। यदि उनको आप नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते तो निर्देश दीजिए की आज से जिस किसी के पास अधिक मात्रा में अन्न जमा पाया जाता है तो वह राजा को बेच दे, नहीं तो आवश्यकता से अधिक अन्न राज्य की संपत्ति मानकर जप्त कर लिया जाएगा।’ 
उनमें से एक व्यक्ति ने कहा जो पहले चोरी करता था।
 
‘बहुत अच्छा सुझाव दिया है तुमने’ राजा ने कहा
‘ठहरो महाराज! उस व्यक्ति ने विक्रम को टोकते हुए कहा।
 
‘‘हे राजन! दूसरा आदेश दीजिए कि जब तक राज्य को इस विपदा से छुटकारा नहीं मिलता। जब तक सभी जरूरत मंद लोगों को सस्ते दामों पर अन्न उपलब्ध होगा और जो खरीदने में बिलकुल भी असमर्थ हैं उन्हें भी उनकी जरूरत के हिसाब से अन्न मिलेगा।’
 
‘वाह क्या बात है मित्र! यह तो और भी अच्छा सुझाव है।’ विक्रम ने कहा
 
‘महाराज हमारे राज्य में प्रत्येक वर्ष या तो बढ़ आती है या किसी इलाके में जबरदस्त सूखा पड़ता है। आपको तीसरा आदेश देना है कि जिन नदियों में बाढ़ आती है उनसे छोटी-छोटी नदी-नहरों को उन स्थानों तक बनाया जाना चाहिए। जहां सूखा पड़ने की थोड़ी-सी भी संभावना है।’
 
राजा विक्रमादित्य ने इन सभी आदेशों को पूरे राज्य में लागू करवाना शुरू कर दिया। कुछ दिन पश्चात ही इन योजनाओं से राज्य की इस विपदा से निपटारा कर लिया गया। आने वाले वर्षों तक बाढ़ और सूखा राज्य में नहीं पड़ा। नतीजन राज्य की सुख-समृद्धि बढ़ने लगी और राजा विक्रम की यशकीर्ति चारों दिशाओं में फैलने लगी।
 
सातवीं पुतली ने राजा भोज से कहा कि ‘हे राजा भोज! अब बताओ क्या तुम इस सिंहासन पर बैठने के योग्य हो? क्या आपने भी कभी ऐसा कार्य किया है? यदि आपने इनमें से कोई की कार्य किया हो तो आप इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी हैं। राजा भोज इस बार भी कुछ नहीं बोल सका और सोने के लिए राजमहल चला गया फिर अगले दिन सिंहासन पर बैठने की तैयारी में जुट गए।
 
 
पुस्तक : सिंहासन बत्तीसी 
लेखक : एम.एम.चन्द्रा  
प्रकाशक : डायमंड बुक्स 
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