मालवी संस्कृति की मिठास : गेरी-गेरी छांव

Webdunia
शनिवार, 10 अगस्त 2024 (08:36 IST)
-डॉ. शशि निगम
Geri-Geri Chhaanv: मालवी लोक संस्कृति में पले-बढ़े अनेक सम्मानों से सम्मानित प्रतिष्ठित लघुकथाकार अधिवक्ता भाई विजयसिंह चौहान की मालवी में अनुवादित कृति 'गेरी-गेरी छांव' (लघुकथा संग्रह) निश्चित रूप से मालवी लोक साहित्य-सरिता में एक कलश जल समर्पित करने जैसा पवित्र कार्य है।

चौहान की हिन्दी लघुकथाओं का मालवी में अनुवाद किया है साहित्यकार बेन अर्चना मंडलोई ने। हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति वीएस कोकजे के आशीर्वचनों से युक्त 95 पृष्ठों में 72 सचित्र लघुकथा व 31 मुहावरे-लोकोक्ति वाली मनभावन कृति पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। साहित्यकार चाहे किसी भी विधा में लिखे अपक्षाकृत उसके चिंतन-मनन का दायरा विस्तृत होता है। वह व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी के प्रति संवेदनशील रहता है। कोई भी रीति-कुरीति, नीति-अनीति, परिणाम-दुष्परिणाम सभी बिंदुओं पर ध्यानाकर्षण करते हुए वह समाज को संदेश देकर पथ-प्रदर्शक जैसा सद्कार्य भी करता है।

चौहान की लघुकथाओं में मालवी परिवेश, लोक संस्कृति, तीज-त्योहार, मानवीय संवेदनाएं और सामाजिक मूल्यों के प्रति चिंतन की सहज अभिव्यक्ति हुई है। मालवी लोक संस्कृति के प्रति उनका अनुराग हृदय से छलकता-सा प्रतीत होता है, जब वे अपने मन की बात 'मां के आंगन से' के माध्यम से कहते हैं।

किसी भी बोली या भाषा में अनुवाद करना आसान कार्य नहीं है। अर्चना मंडलोई ने लेखक के मूल भावों को यथावत रखने का पूरा प्रयास करते हुए मनःपूर्वक सहज-सरल मालवी भाषा में अनुवाद किया है, जो आज के दौर में पाठक आसानी से समझ सकें। संग्रह की सबसे पहली लघुकथा है 'दूध को कर्जो' इसमें वृद्धावस्था के समय बेटी का मां के प्रति कर्त्तव्य तथा माता का स्वाभाविक प्रेम अभिव्यक्त हुआ है तो 'परिधि' के माध्यम से शासन द्वारा किए जा रहे वृक्षारोपण और जनता की उसके संरक्षण-संवर्द्धन हेतु जिम्मेदारी को रेखांकित किया गया है।
चार बेटों की माता को वृद्धावस्था में दो समय के भोजन के लिए तरसना पड़े इससे बढ़कर और क्या विडम्बना हो सकती है भारतीय समाज के लिए? 'निर्वासिता' में बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। 'मोंटी' के माध्यम से दादाजी बालक मोंटी को परिवार व संस्कारों की अहमियत लता (बेल) और उसके सहारे के उदाहरण से बहुत प्यार से समझाते हैं। 'गेरी-गेरी छांव' में लच्छू सेठ को अपनी मातृभूमि और गांव तथा बरगद की गेरी-गेरी छांव पुनः पुनः लौट आने के लिए प्रेरित करते हैं।
 
इसी तरह 'संतोष', 'फरक', 'अंधी गली' जैसी और भी लघुकथाएं प्रेरणादायी और संदेशात्मक कही जा सकती हैं। मालवी लोक कला को दर्शाते सुन्दर आवरण पृष्ठ युक्त यह लघुकथा संग्रह मालव माटी के प्रति अपने ऋण से उऋण होने व मालवी बोली के संवर्धन हेतु स्तुत्य प्रयास है। इस शुभ कार्य हेतु भाई विजयसिंह और बेन अर्चना को हार्दिक बधाई और अनंत मंगलकामनाएं।
 
लेखक के बारे में : विजयसिंह मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं। वे साहित्य के साथ ही वे विधि विषयों पर पूरे अधिकार के साथ कलम चलाते हैं। उनकी लघुकथाओं का मालवी, निमाड़ी, उड़िया और बांग्ला में अनुवाद हो चुका है। उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती हैं। उन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित और पुरस्कृत किया जा चुका है। 
 
पुस्तक : 'गेरी-गेरी छांव (मालवी अनुवाद)
लेखक : विजयसिंह चौहान 
अनुवाद : श्रीमती अर्चना मंडलोई
प्रकाशक : श्री विनायक प्रकाशन
मूल्य : 150 रुपए

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