जब प्रेमचंद की लिखी 'सोजे-वतन' की प्रतियां जला दीं और कलेक्‍टर ने उनके लिखने पर लगा दिया ‘प्रतिबंध’

Webdunia
प्रेमचंद की कहानी ईदगाह हो या गोदान। कफन हो या सेवासदन। कोई भी नाम लो, हमें बचपन से अब तक उनका लिखा और उनके किरदार याद हैं। आज 8 अक्‍टूबर को उनकी पूण्‍यति‍थि‍ है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जो शायद आप नहीं जानते होंगे।

मुंशी प्रेमचंद का असल नाम धनपतराय था और उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के नज़दीक लमही गांव में हुआ था। पिता का नाम अजायब राय था और वे डाकखाने में नौकरी करते थे। आठ साल की उम्र थे तब मां का निधन हो गया। पिता ने दूसरा विवाह कर लिया। यहीं से उनके संघर्ष की कहानी शुरू हो गई।

सिर्फ 15 साल की उम्र में पिता अजायब राय ने उनकी शादी उम्र में बड़ी लड़की से करा दी। शादी के एक साल बाद पिता का निधन हो गया और अचानक ही उनके सिर पांच लोगों की गृहस्थी और ख़र्च का बोझ आ गया। प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने का शौक था और वे वकील बनना चाहते थे। गरीबी की मार के कारण उच्च शिक्षा नहीं ले सके।

उन्हें उपन्यास पढ़ने का ऐसी दिलचस्‍पी जागी कि किताबों की दुकान पर बैठकर ही उन्होंने सारे उपन्यास पढ़ लिए। 13 साल की उम्र में से ही प्रेमचन्द ने लिखना शुरू कर दिया था। शुरुआत में कुछ नाटक लिखे और बाद में उर्दू में उपन्यास लिखा।

आर्थिक तंगी और पारिवारिक समस्याओं के कारण उनकी पत्नी मायके चली गई और फिर कभी नहीं लौटी। वे उस समय के धार्मिक और सामाजिक आंदोलन आर्य समाज से प्रभावित रहे। प्रेमचंद विधवा विवाह का समर्थन करते थे और 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा को जीवन में ढालते हुए उन्होंने दूसरा विवाह बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया।

प्रेमचंद आज़ादी से पहले के समय के समाज और अंग्रेज़ी शासन के बारे में लिख रहे थे। उन्होंने जनता के शोषण, दुख, दर्द और उत्पीड़न को बहुत बारीकी से महसूस किया और उसे लिखा। लेकिन अंग्रेज़ी हुकूमत को ये गवारा नहीं था। 1910 में उनकी रचना 'सोजे़-वतन' (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। उनकी आंखों के सामने 'सोजे़-वतन' की सभी प्रतियां जला दी गईं। कलेक्टर ने उन्हें बिना अनुमति के लिखने पर भी पाबंदी लगा दी।

प्रेमचंद का रचना संसार बहुत बड़ा और समृद्ध है। उन्‍होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, लेख, आलोचना, संस्मरण, संपादकीय जैसी अनेक विधाओं में साहित्य लिखा। उन्होंने कुल 300 से ज़्यादा कहानियां, 3 नाटक, 15 उपन्यास, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें लिखीं। इसके अलावा सैकड़ों लेख, संपादकीय लिखे जिसकी गिनती नहीं है।

1918 में 'सेवासदन' उनका हिंदी में लिखा पहला उपन्यास था। इस उपन्यास को उन्होंने पहले 'बाज़ारे हुस्न' नाम से उर्दू में लिखा लेकिन हिंदी में इसका अनुवाद 'सेवासदन' के रूप में प्रकाशित हुआ। यह एक स्त्री के वेश्या बनने की कहानी है।

अवध के किसान आंदोलनों के दौर में 'प्रेमाश्रम' किसानों के जीवन पर लिखा हिंदी का शायद पहला उपन्यास है। फिर 'रंगभूमि', 'कायाकल्प', 'निर्मला', 'गबन', 'कर्मभूमि' से होता हुआ उपन्यास लिखने का उनका यह सफर 1936 में 'गोदान' के उफ़क तक पहुंचा।

प्रेमचंद के उपन्यासों में 'गोदान' सबसे ज़्यादा मशहूर हुआ और विश्व साहित्य में भी उसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 में उन्होंने आख़िरी सांसें लीं। प्रेमचंद अपने उपन्यासों में भारतीय ग्रामीण जीवन को केंद्र में रखते थे।

प्रेमचंद के उपन्यास और कहानियों का भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। प्रेमचंद हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर हैं और बने रहेंगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

ग्लोइंग स्किन के लिए चेहरे पर लगाएं चंदन और मुल्तानी मिट्टी का उबटन

वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

इन विटामिन की कमी के कारण होती है पिज़्ज़ा पास्ता खाने की क्रेविंग

The 90's: मन की बगिया महकाने वाला यादों का सुनहरा सफर

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

गर्मियों में ये 2 तरह के रायते आपको रखेंगे सेहतमंद, जानें विधि

क्या आपका बच्चा भी चूसता है अंगूठा तो हो सकती है ये 3 समस्याएं

अगला लेख