…तो ‘क्रिकेटर’ होते 'क्‍लासिकल गायक' उस्‍ताद राशिद खान

नवीन रांगियाल
साल 2007 के पहले उस्‍ताद राशिद खान को सिर्फ क्‍लासिकल सुनने वालों की पसंद थे, लेकिन इसी साल जब इम्तियाज अली की फिल्‍म ‘जब वी मेट’ आई तो उनका नाम हर उस आदमी की जुबान पर भी था, जो शास्‍त्रीय संगीत नहीं सुनता हैं।

दरअसल, इस फिल्‍म में गाया उनका गीत ‘आओगे जब तुम हो साजना अंगना फूल खिलेंगे’ इतना लोकप्रिय हुआ कि वे नॉन क्‍लासिकल दुनिया में भी प्रसिद्ध हो गए। सुगम संगीत में ठुमरी की छौंक लोगों को बेहद पसंद आया। अब आलम यह है कि उनकी क्‍लासिकल की महफिलों में भी यह गीत फरमाईश की सूची में सबसे पहले होता है।

बचपन में राशिद खान क्रिकेट के दीवाने थे, अगर संगीत की तरफ उनका रुझान नहीं होता तो बहुत हद तक संभव है कि हम उनकी ठुमरी और ख्‍याल सुनने के बाजाए आज उन्‍हें क्रिकेट के मैदान में पसीना बहाते देख रहे होते।

उस्‍ताद राशिद खान को खासतौर से हिन्‍दुस्‍तानी संगीत में ख्‍याल गायिकी के लिए जाना जाता है। वे ठुमरी, भजन और तराना भी गाते हैं।

मंगलवार को उस्‍ताद राशिद खान इंदौर के ‘लाभ मंडपम’ परिसर में इंदौर म्‍यूजिक फेस्‍टिवल आयोजन में प्रस्‍तुति देंगे। इंदौर और मध्यप्रदेश के कई दूसरे शहरों के संगीत प्रेमियों को राशिद खान का बेसब्री से इंतजार था। इस फेस्‍टिवल में उनकी प्रस्‍तुति की खबर के बाद इंदौर और आसपास के कई शहरों और कस्‍बों से लोग उन्‍हें सुनने के लिए यहां पहुंचेंगे।

राशिद खान रामपुर शहास्‍वन घराने से ताल्‍लुक रखते हैं। बचपन में उनकी रुचि क्रिकेट खेलने में थी, लेकिन गजल और कुछ कलाकारों की प्रस्‍तुतियां देखने-सुनने के बाद संगीत में उनकी दिलचस्‍पी जागी और उन्‍होंने क्‍लासिकल संगीत सीखना शुरू किया। अपने इंटरव्‍यू में वे कहते हैं कि शुरुआत में वे क्‍लासिकल की हैवी और उबाऊ रियाज से बहुत बोर भी हो जाते थे, लेकिन बाद में धीरे-धीरे उन्‍हें इसमें रस आने लगा। अगर म्‍यूजिक की तरफ उनका ध्‍यान नहीं जाता तो संभव है वे आज क्रिकेटर होते।

उत्‍तर प्रदेश के जिस रामपुर शहास्‍वन घराने से वे हैं, वो उनके दादा उस्‍ताद इनायत हुसैन खां ने शुरू किया था। राशिद उस्‍ताद गुलाम मुस्‍तफा खां के भतीजे भी हैं। 11 साल की उम्र में राशिद खान ने दिल्‍ली में अपनी पहली प्रस्‍तुति दी थी। उन्‍होंने क्‍लासिकल संगीत में प्रयोग कर कई लाइट मोड के गीत भी गाए हैं। उस्‍ताद तराना गायिकी के भी मास्‍टर माने जाते हैं। उनका घराना रामपुर शहास्‍वन की गायन शैली मप्र के ग्‍वालियर घराना शैली के काफी करीब मानी जाती है।

1 जुलाई 1968 में उत्‍तर प्रदेश के बदायूं में जन्‍में खान साहब पिछले करीब 40 साल से क्‍लासिकल म्‍यूजिक में सक्रिय हैं। इंदौर के श्रोताओं को लंबे समय से उस्‍ताद राशिद खान साहब की प्रतीक्षा थी। ‘संगीत गुरुकुल’ द्वारा आयोजित इंदौर म्‍यूजिक फेस्‍टिवल में मंगलवार को श्रोता उनकी गायिकी का लुत्‍फ उठा सकेंगे।

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