अटल विहारी की ये 3 कलम तोड़ कविता आपको प्रेरणा से भर देंगी

Webdunia
atal bihari vajpayee poems
भारत के दसवें प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज भी भारत के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत हैं। वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। साथ ही हर साल 16 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वाजपेयी जी सिर्फ एक राजनेता ही नहीं बल्कि वह एक कवि, पत्रकार एवं कुशल वक्ता भी थे। आज उनकी इस पुण्यतिथि पर उनकी कुछ कविता के बारे में जानते हैं... 
 
1. कदम मिला कर चलना होगा 
बढ़ाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
कुछ कांटो से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा। 

2. आओ फिर से दिया जलाएं 
 
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
 
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
 
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
3. मैं न चुप हूं न गाता हूं
 
न मैं चुप हूं न गाता हूं
सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पांव
ओझल गांव
जड़ता है न गतिमयता
 
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूं न गाता हूं
 
समय की सदर सांसो ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,
 
बिखरे नीड़,
विहंसे चीड़,
आंसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूं।
न मैं चुप हूं न गाता हूं। 
ALSO READ: आज तुम्हे मैं भारत का गुणगान सुनाने आया हूं..स्वंत्रता दिवस 2023 पर विशेष कविता

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

आज का लाजवाब चटपटा जोक : अर्थ स्पष्ट करो

अगला लेख