मत आना प्रभु ! अब अवतार लेकर...

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
भारत का आध्यात्मिक जीवन संवरा 
  वेद, उपनिषद, पुराणों से। 
हिमालयी तपस्या-स्थलों से,
  पवित्रम तीरथ स्थानों से।। 
वाल्मीकि, शंकराचार्य से,
  गौतम बुद्ध, महावीर से। 
नानक, रामकृष्ण, नरेन्द्र से,
  तुलसी, सूर, कबीर से  ।। 
बौद्ध, जैन, सनातन जीवन-धारा, 
  बहती रही यहाँ निःशंक। 
हाय ! धूर्त बाबाओं के कारनामों से 
  लगा अब घनघोर कलंक ।। 1 ।। 
 
प्रवचनकार हुए व्यापारी,
 कथा-आयोजन बने तमाशे। 
मंदिर श्रद्धाओं के विदोहक,
  धन के अर्जक सब अच्छे खासे ।। 
धर्मग्रंथ हो गये लुप्त सब, 
  डेरा / मठाधीशों ने नये शगूफे तराशे। 
आध्यात्मिक बहरूपियों ने ईजाद कर लिये। 
  कितने नये आध्यात्मिक झाँसे।।2।। 
 
बाबाओं की इस दुनिया में अब 
 सब ' गुरु ही गुरु ' है,
'गोविन्द ' का तो कहीं जिकर नहीं है। 
 छुप गये धर्म- संस्कृति अंधियारी गली में,
आध्यत्मिकता  कहीं सिसक रही है ।।
 बाबाओं / घोटालेबाजों / धंधेबाजों की तिकड़ियाँ ,
डेरों / मठों में छाई हर कहीं है। 
 मत आना प्रभु ! अवतार धर भूल कर भी,
 आपके लिये अब कोई जगह नहीं है ।।3।।

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