दीप पर्व पर कविता : दिवाली के दीये जलने लगे...

राकेशधर द्विवेदी
दिवाली के दीये जलने लगे,
आंगन में रोली सजने लगी।
कमरे में बैठी छोटी-सी बिटिया,
चौखट में आकर चहकने लगी। 
 
धीरे से उसने अम्मा से बोला,
लाकर दे मुझको तुम नया चोला।
जिसको पहनकर बाहर मैं जाऊं,
मुहल्ले के बच्चों के संग दिवाली मनाऊं।
 
रोकर के उससे अम्मा ने बोला,
अब तुमने है मुझसे बोला।
 
दिवाली दिवाला निकालने लगी है,
गैस के सिलेंडर में जलने लगी है। 
बापू के पैसों को नजर लगी है, 
हर तरफ यह खबर लगी है।
 
ऐसे में दिवाली बनी है सौतन,
जिसे घर से दूर रखती है बेचारी।
तुमसे है हमारी यह विनती, 
कभी मत जलाना दिवाली की बत्ती।
 
दिवाली जो छीने मुंह का निवाला,
ऐसी दिवाली से कर लो किनारा।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है आंवला और शहद, जानें 7 फायदे

थकान भरे दिन के बाद लगता है बुखार जैसा तो जानें इसके कारण और बचाव

गर्मियों में करें ये 5 आसान एक्सरसाइज, तेजी से घटेगा वजन

वजन कम करने के लिए बहुत फायदेमंद है ब्राउन राइस, जानें 5 बेहतरीन फायदे

गर्मियों में पहनने के लिए बेहतरीन हैं ये 5 फैब्रिक, जानें इनके फायदे

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में

चित्रकार और कहानीकार प्रभु जोशी के स्मृति दिवस पर लघुकथा पाठ

गर्मियों की शानदार रेसिपी: कैसे बनाएं कैरी का खट्‍टा-मीठा पना, जानें 5 सेहत फायदे

Labour Day 2024 : 1 मई को क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस?

अगला लेख