गजल : परछाईं झूठ की

अमरेश सिंह भदोरिया
1.
 
मृग-मरीचिका-सी चाह,
मन में पल रही।
परछाईं झूठ की यहां,
सच को छल रही।
 
2.
 
खाक हुई थी लंका,
अपनी ही सूझ-बूझ से।
मंथरा की सीख पर,
कैकेयी अब भी चल रही।
 
3.
 
दिवाली-सा हो गया है,
हर रात का वजूद।
होलिका की याद में,
ये दोपहर जल रही।
 
4.
 
झूठे लगते हैं सूत्र सभी,
पुरुषार्थ चतुष्टम के।
प्रज्ञावान ऋचा अपना,
मकसद बदल रही।
 
5.
 
मैंने भी नेकी कर कभी,
दरिया में डाली थी।
चर्चा समुद्र मंथन की,
आज तक चल रही।
 
6.
 
ठंडी हवा के झोंके से, 
कुछ राहत जरूर होगी।
बदले हुए संदर्भ से,
'अमरेश' ये पुरवाई चल रही। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments

वर्कआउट करते समय क्यों पीते रहना चाहिए पानी? जानें इसके फायदे

तपती धूप से घर लौटने के बाद नहीं करना चाहिए ये 5 काम, हो सकते हैं बीमार

सिर्फ स्वाद ही नहीं सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है खाने में तड़का, आयुर्वेद में भी जानें इसका महत्व

विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

समर में दिखना है कूल तो ट्राई करें इस तरह के ब्राइट और ट्रेंडी आउटफिट

Happy Laughter Day: वर्ल्ड लाफ्टर डे पर पढ़ें विद्वानों के 10 अनमोल कथन

संपत्तियों के सर्वे, पुनर्वितरण, कांग्रेस और विवाद

World laughter day 2024: विश्‍व हास्य दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

01 मई: महाराष्ट्र एवं गुजरात स्थापना दिवस, जानें इस दिन के बारे में

अगला लेख