हिंदी कविता : झूठी होती हैं ये संस्कारी लड़कियां...

स्मृति आदित्य
बहुत झूठी होती हैं ये संस्कारी लड़कियां, 
मत मानना इनकी बात अगर ये कहें कि 
चश्मे का नम्बर बदल गया है
 इसलिए आंखें सूजी हैं, 
मत भरोसा करना कि 
जब ये कहें कि रात को सो नहीं पाई 
शायद इसलिए सूजी हो आंखें, 
अनकही वो दास्तां उमड़ रही हैं इनकी आंखों में 
जिन पर बंधा है स्वाभिमान का पूल ,
ये हरगिज नहीं तोड़ेंगी इसे 
तुम्हें ही जाना होगा उस पार, 
झांकना होगा थोड़ा आगे बढ़कर 
पंजों के बल पर और 
देखनी होगी इनके भीतर बहती नीले दुख की नीली नदी.... 
इस झर झर कल कल झाग में है
 उसके दर्द का अश्रुपूरित राग.... 
तुम एक अंजुरी उलीचोगे 
वो अपनी हर सीपी खोल देगी 
जहां उसके अश्रु मोती बन झिलमिला रहे होंगे.... 
तो मत पूछना कभी किसी संस्कारी लड़की से 
की आंखें क्यों सूजी हैं 
ये झूठी लड़कियां 
बहानों की पोटली बहा देंगी 
पर नहीं लेने देंगी तुम्हें सच का आचमन, 
कसम से बहुत झूठी होती हैं ये संस्कारी लड़कियां....
 

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