हिन्दी कविता : रूह

डॉ मधु त्रिवेदी
रूह से जब अलग हो जाएगा 
कैसे फिर इंसान रह जाएगा
छोड़ कर यह जहां चला जाएगा
रोता बिलखता छोड़ जाएगा 
 
चलती-फिरती तेरी यह काया 
मुट्ठी भर राख में सिमट जाएगी
बातें तेरी याद जमीन पर आएगी 
परियों की कहानी सुनाई जाएगी
 
अकड़ सारी तेरी धूमिल हो कर
लाठी-सी तन कर रह जाएगी
बन तारा आसमां में चढ़ ऊपर को
संतति को राह हमेशा दिखाएगा
 
खूब कड़क बोल गूंजा करते थे
खूब दुंदुभि तेरी बजा करती थी 
मान-सम्मान भी पाया तूने बहुत 
अब मूक बन चल पड़ा यहां से
रूह ने देह में घुस रूह को लुभाया
संग संग प्रेम सरगम गुनगुनाया
टूटते दिल को बसंत से महकाया 
अनजान को भी अपना बनाया
 
जीवन संग्राम में रूह फना हो जाए
मेरा मिल मुझसे बिछड़ जाएगा 
आघात गहरा दे कर चला जाएगा 
बरबस फिर बहुत याद आएगा 
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