हिन्दी कविता : ऋण

राकेशधर द्विवेदी
वैसे तो दोनों का नाम
'श' से प्रारंभ होता था
एक शोषित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था
और दूसरा शोषक वर्ग का।
 
दोनों ने ही ऋण लिया था
एक ने ऋण लिया कि इसलिए
कि बंजर धरती से उगा सके कुछ ज्यादा अन्न
भर सके कुछ लोगों का पेट 
पूरा कर सके पथराई आंखों से देखे गए सपने।
 
तो दूसरे ने लिया ऋण कि पूर्ण कर सके हवाई महत्वाकांक्षा
उन तमाम हसरतों की जो नवाबी थीं। 
और बन सके तमाम दौलत का स्वामी।
 
ऋण न चुका पाने की स्थिति में 
एक ने प्राण त्याग दिया और दूसरे ने राष्ट्र।
 

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