हिन्दी कविता : हारना

राकेशधर द्विवेदी
वैसे तो हारना एक 
दु:खदायी क्रिया है
लेकिन कभी-कभी यह
सुखदायी भी हो जाता है।
 
जैसे हम हार जाते 
हैं किसी छोटे से 
बच्चे से खेल में
और खुश होते हैं
उसकी जीत की खुशी में
ताली बजाने पर।
 
या फिर हार जाते हैं
बड़े-बड़े सूरमा, वीर
किसी नवयुवती की 
सुन्दर मुस्कान के समक्ष।
 
वैसे ही अक्सर 
हार जाते हैं लोगों की 
आशाएं, आस-विश्वास
वादा इत्यादि अनेक 
स्वनामधन्य जनप्रतिनिधि 
सामान्य जन को यह समझाते हुए
कि हार के बाद ही जीत है।

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