नई कविता : जीवन-संध्या

देवेन्द्र सोनी
लो देखते ही देखते
गुजर गए
उम्र के तीनों पड़ाव ।
 
बीत गया हंसते-खेलते
प्यार-दुलार में बचपन।
 
दब कर जिम्मेदारियों के तले
निकल गई जवानी भी
और आ ही गई 
वह तड़पाती
जीवन-संध्या 
जिसकी कल्पना से ही 
बहुधा थरथराते हैं सब।
 
कहीं मिथ्या तो कहीं सच है
जीवन की यह अबूझ सांझ
जिसमें होते हैं वे सभी पल
जो जिए हैं हमने अब तक
और जिन्हें जीना है
उस वक्त तक
जब सुकून से, सो सकेंगे हम
चिर-निद्रा में ।
 
शास्वत सत्य भी है यही ।
 
फिर क्यों न हम इस 
जीवन-संध्या को
खुशियों से भर दें।
 
नैसर्गिक कष्ट और
अवसाद से रहकर दूर
बांट दें अपने अनुभव सारे
जो करें, 
किसी न किसी का कल्याण
करें राह सुगम, मानने वालों की ।
 
निश्चित मानिए ,
जीवन की संध्या में यदि
हम रहेंगे प्रसन्न , 
बांटेंगे अपने अनुभव
भूलकर दर्द सारा
तो दे सकेंगे बहुत कुछ 
जिसकी जरूरत है आज
घर-परिवार और समाज को ।
 
तो आइए, लें संकल्प
जीवन-संध्या को
खुशनुमा और प्रेरक बनाने का
अपनी ओर से 
भूलकर सारे दर्द ।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

इस चाइनीज सब्जी के आगे पालक भी है फैल! जानें सेहत से जुड़े 5 गजब के फायदे

आइसक्रीम खाने के बाद भूलकर भी न खाएं ये 4 चीज़ें, सेहत को हो सकता है नुकसान

सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है नारियल की मलाई, ऐसे करें डाइट में शामिल

लू लगने से आ सकता है हार्ट अटैक, जानें दिल की सेहत का कैसे रखें खयाल

जल्दी निकल जाता है बालों का रंग तो आजमाएं ये 6 बेहतरीन टिप्स

AC का मजा बन जाएगी सजा! ये टेंपरेचर दिमाग और आंखों को कर देगा डैमेज, डॉक्टरों की ये सलाह मान लीजिए

गर्मी में फलों की कूल-कूल ठंडाई बनाने के 7 सरल टिप्स

घर में नहीं घुसेगा एक भी मच्छर, पोंछे के पानी में मिला लें 5 में से कोई एक चीज

क्या कभी खाया है केले का रायता? जानें विधि

जीने की नई राह दिखाएंगे रवींद्रनाथ टैगोर के 15 अनमोल कथन

अगला लेख