कविता : नारी तेरे रूप अनेक

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शिवानी गीते
मैंने पूछा लोगों से नारी क्या है ?
किसी ने कहा मां है, किसी ने कहा बहन
किसी ने कहा हम सफर है, तो किसी ने कहा दोस्त
 
सबने तुझे अलग रूपों में बयां कर दिया 
अब मैं क्या तेरे बारे में कहुं
तू ममता की मूरत है, तू सच की सूरत है
 
तू रौशनी की मशाल है, जो अंधकार से ले जाती है परे 
तू गंगा की बहती धारा का वो वेग है, जो पवित्र और निश्छल है
 
तेरे रूप तो कई हैं, तू अन्नपूर्णा है तू मां काली है 
तू ही दुर्गा, तू ही ब्राह्मणी है 
मां यशोदा की तरह तूने कृष्ण को पाला, गौरी की तरह शिव को संभाला 
 
तू ही हर घर के आंगन की तुलसी है
तू ही सबका मान है, तू ही सबका अभिमान है 
 
नवरात्री में नौ रूपों में पूजी जाती है 
लेकिन तेरे नौ नहीं तेरे तो अनेक रूप हैं
ऐ नारी तुझे नमन!  

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