नई कविता - तारीख

देवेन्द्र सोनी
तारीखें, आती हैं-जाती हैं 
फिर-फिर आती हैं 
पर समाया रहता है इनमें
सृष्टि का, हम सबका
कहा / अनकहा 
वह हिसाब, जो 
चलता है जन्म-जन्मांतर तक।
 
बच नहीं सकता 
इन तारीखों से कोई ।
 
इसलिए जरूरी है -
रखें यह ध्यान 
हर तारीख में हो वही दर्ज
जिससे जब भी मिले 
प्रतिफल हमको, हो वह सुखद
और पछतावे से रहित।
 
दें जो वह सुखानुभूति 
जिसमें समाहित हो 
इंसानियत का हर रंग।
 
बनाएंगे न अब से हम 
हर तारीख को ऐसी ही तारीख।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

जीवन की ऊर्जा का मूल प्रवाह है आहार

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डाक्टर्स और एक्सपर्ट

इतना चटपटा चुटकुला आपने कभी नहीं पढ़ा होगा: इरादे बुलंद होने चाहिए

अगला लेख