मानवता को सराबोर करती कविता : गूंज...

सुशील कुमार शर्मा
एक गूंज उठती है दिल में
और फैल जाती है अनंत तक
उस गूंज में दर्द है सिहरन है
अपनों का धोखा है
गैरों का अपनापन है।
 
वह गूंज अनुगूंजित होकर
कविता में उतरती है
स्वर देती है समाज के सरोकारों को
उठाती है ज्वलंत प्रश्न
पर्यावरण की लाशों के।
 
वह गूंज पहुंच जाती है
गांव के उस चौराहे पर
जहां दलितों पर प्रश्नचिन्ह है।
 
शहर की उन झोपड़ियों में
जहां दर्द और दवा निगल रही हैं जवानियां
जहां की बच्चियां कम उम्र में ही
औरत होने का दर्द झेलती हैं
जहां औरतें मशीन की तरह
धूरी पर घूमती बिखर जाती हैं।
 
यह गूंज नहीं रुकती नाद की तरह
बजती है मन के आकाश में
यह संसद से सड़क तक के
चरित्र को आवाज देती है
मानवता की सरहदों से लेकर
मनुष्य के विघटन को गाती है।
 
ये गूंज नहीं पहुंच पाती
जंगल के उन बाशिंदों तक
जिनके सपनों का कोई
सवेरा नहीं होता है
जिस उम्र में पैदा होते हैं
कई साल बाद उसी उम्र
में मर जाते हैं जानवर से।
 
महानगरों के कहकहों की गूंज
विकास के पुल से गुजरती है
गांव के कुम्हार की झोपड़ी तक
जहां एक दीया टिमटिमाता है
तरसता है दिवाली के लिए।
 
गूंज में शब्द नहीं होते
अर्थ भी नहीं होते
होते हैं सिर्फ अहसास
जिंदगी को समझने के।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विवाह के बाद गृह प्रवेश के दौरान नई दुल्हन पैर से क्यों गिराती है चावल से भरा कलश? जानिए क्या है इस रस्म के पीछे का कारण

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डॉक्टर्स और एक्सपर्ट

Winter Fashion : सर्दियों में परफेक्ट लुक के लिए इस तरह करें ओवरसाइज्ड कपड़ों को स्टाइल

सभी देखें

नवीनतम

बॉडी पॉलिशिंग का है मन और सैलून जाने का नहीं है टाइम तो कम खर्च में घर पर ही पाएं पार्लर जैसे रिजल्ट

मजेदार बाल गीत : गुड़िया रानी क्या खाएगी

क्या बच्‍चों का माथा गर्म रहना है सामान्य बात या ये है चिंता का विषय?

आपकी ये फेवरेट चीज, बच्चों के लिए है जहर से भी ख़तरनाक , तुरंत संभल जाइए वरना बच्चों को हो सकते हैं ये नुकसान ...

कितना सच है महिलाओं को लेकर आचार्य चाणक्य का ये दावा, चाणक्य नीति में मिलता है विशेष उल्लेख

अगला लेख