अब इन कंडों की होली हो...

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
होली हो ओछी राजनीति की, टुच्चे बयानों की होली हो। 
येन-केन सत्ता हथियाने के बेशर्म अरमानों की होली हो।।

होली हो अच्छी चलती सरकारों को ठेस लगाने वालों की। 
होली हो सांप्रदायिकता के दानव को फिर-फिर से जगाने वालों की।।

अच्छी चलती अर्थव्यवस्था में निराशा का मंत्र फूंकने वालों की। 
विदेशी मीडिया में अपने देश की थाली में ही थूकने वालों की।।

विघ्न संतोषी, सत्ता लोभी इन असुरों के ये सब घिनौने हथकंडे हैं। 
इन्हें जलाओ होली पर, ये ही इनके मुंह से निकले गोबर के कंडे हैं।।

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