कविता: जगन्नाथ रथ यात्रा

सपना सीपी साहू 'स्वप्निल'
पूर्व दिशा में तीर्थ जगन्नाथ पुरी एक धाम,
दर्शन देते वहाँ जगन्नाथ, सुभद्रा, बलराम।
 
राधा-कृष्ण युगल छवि के प्रतीक जगन्नाथ,
सुख-दुख में सहयोगी, देते भक्तों का साथ।
 
शुक्ल पक्ष आषाढ़ तिथि होती अतिपावन,
रथयात्रा का शुभ त्योहार आता मनभावन।
 
भक्त,भगवान के दर्श पाने रथयात्रा में जाते,
'सब मनिषा मोर परजा' कह भगवान आते।
 
जगन्नाथ मंदिर में वे तीनों भाई-बहन सुंदर,
प्रजा वत्सला निकलते, बैठते रथ के अंदर।
 
मुख्य मंदिर के बाहर तीनों रथ बड़े सजते,
जगन्नाथ रथ नंदीघोष, सोलह चक्के होते।
 
बलराम रथ हलध्वज, चौदह चक्के रहते,
सुभद्रा रथ देवदलन बारह चक्रो से चलते।
 
लाल-पीले रंगों में, कृष्ण का रथ सजाते,
बलभद्र रथ पर लाल-नीले-हरे रंग फबते।
 
काले-लाल रंगों में सुभद्रा का रथ जँचता,
दो सौ आठ किलो सोना रथों पर चढ़ता।
 
पुरी से रथ मौसी के घर मंदिर गुंडिचा आता,
बहुड़ा यात्रा में नौ दिवस वहीं ठहराया जाता।
 
मौसी रानी गुंडिचा तीनों पर खूब स्नेह वारती,
सहर्षता से स्वागत, भोग पादोपीठा खिलाती।
 
जो भक्त खींचे आस से रथ मनोरथ पूर्ण पाता,
धन-धान्य, वैभव-आरोग्य का आशीर्वाद पाता।
 
शास्त्र पुराण भी स्वीकारें रथयात्रा की महत्ता,
भक्त पाते सुख कहे, जय जगन्नाथ की सत्ता।।
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