तुम जो मेरे हुए :प्रेम कविता

डॉ. अंजना चक्रपाणि मिश्र
तुम जो मेरे हुए !!
मिली हर ख़ुशी
चूड़ियों की खन-खन
पायल की छन-छन
दास्तां नई सुनाने लगी
तुम जो मेरे हुए....
रातें हुईं मदभरी 
ख़ूबसूरत सबेरे हुए 
साँसे मेरी महकी
बदन खुशबुओं के डेरे हुए
तुम जो मेरे हुए....
पलाश सी दहकती 
रातरानी का इतर छिड़क
रजनीगंधा सी मदमाए
हृदय को जब-तब हिलोरें 
अनंग तेरी लालसाएँ 
तुम जो मेरे हुए ....
चाहूँ होना विलीन
तुम में ही लीन
मैं हो गई हूँ तुम
जित देखूँ उत तू
पुतलियों में बसी
छवि तुम्हारी सलोनी
तुम जो मेरे हुए ....
हूँ तुम्हारी ही धरा 
बन नीराभ्र मुक्ताकाश 
ऐसे मुझ पर छाए 
मुदित मुस्कान संग
अँखुड़ियों से बरसें मोती 
सुनो..सुनो...सुनो सजन
तुम जो मेरे हुए ....
स्वयं मैं ही-
डॉ.अंजना चक्रपाणि मिश्र 
इंदौर,मध्यप्रदेश

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