महाराष्ट्र की राजनीति पर कविता : ओ मतदाता ! मत हो उदास ... !

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
अंततः मुबारक महाराष्ट्र को एक तिमुही सरकार।
एक राजनीतिक मंडप जिसके हैं तीन मुख्य द्वार ||
एक वाहन जिसके हैं तीन पहिए, अलग-अलग मेक व साइज़ के,
एक त्रिकोण जिसकी भुजा/कोण के अलग-अलग आकार || 1 ||
 
 
एक माह के हाई-टेंशन ड्रामें में देखी सबने सब दलों की तासीर।
महंगे होटलों में अलग-अलग हंडियों में पकती खीर ||
कितने हुए ज्वार भाटे, अपनों-अपनों के अंतरद्वंद्व।
शतरंजी चालें, बेशर्मी के अखाड़ी दाव-पेंच,
कभी जुड़ने, कभी टूटने (कभी रूठने, कभी मनाने) के अनिश्चय/आनंद || 2 ||
 
 
प्रजातंत्र की दुहाई, शिवाजी के नाम की गुहार।
अपनों की गुस्ताखी, परायों की मीठी मनुहार ||
क्रिकेट के टेस्ट-मैच सी, चढ़ती-उतरती स्कोर,
किसी का 'रन-आउट' होना और किसी का शतकीय प्रहार || 3||
 
 
ओ मतदाता! अब राजनीति के खेल की यही भावी शैली होगी।
राजनीति की गंगा दिन-दिन और अधिक मैली होगी।
अब यही सीरियल देखने हैं तुमको, हर चैनल पर हंसते-रोते ,
मत उदास होना (क्योंकि) आगे की राजनीति अब एक अबूझ पहेली होगी || 4 ||

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