हिन्दी कविता : रूठा बसंत

Webdunia
- सविता चौधरी





धरती निर्वसन सी अब क्यों दिखती…
खो गया कहां सौंदर्य तुम्हारा..
धूमिल हुए ओढ़नी के रंग सारे,
बदरंग हुए ऋतुओं के रंग सारे। 
        
हूक उठी चिमनी के धुंए-सी
चीख उठी तुम 
वाहन के कोलाहल सी,
ढूंढती तुम कहां
अपने ऋतुराज बसंत को।
 
बालक पूछें, बालिका पूछें...
मां कौन यह ऋतुराज बसंत,
धरती की चूनर कहां रंग-बिरंगी,
देखो ना तुम मां, धरती कांप रही,
उच्छवास से अट्टालिकाएं हिल रहीं
धरती की इस दुर्दशा पर,
बहाता अंबर अम्लीय वर्षा के खारे आंसू।
 
मां यह कैसी वंदना के स्वर?
बस विद्यालय में गूंज रहे…
सरस्वती जी रूठी जन-जन से.. 
मानव, मानव को ही लील रहे
शर्मसार और धिक्कार तुम्हें मानव,
बच्चे ऋतुराज बसंत को ढूंढ रहे !

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

रसोई की इन 7 चीजों में छुपा है आपका स्किन ब्राइटनिंग सीक्रेट, तुरंत जानें इनके बेहतरीन फायदे

Health Alert : कहीं सेहत के लिए हानिकारक तो नहीं है सहजन की फली?

सॉफ्ट आटा गूंथने के 4 सही तरीके, रोटियां बनेंगी फूली हुई और मुलायम

आपके घर के किचन में छुपा है आयल फ्री त्वचा का राज, जानिए ये होममेड क्लींजर बनाने का तरीका

ऑफिस में बनाना चाहते हैं बढ़िया इमेज तो भूलकर भी ना करें ये गलतियां

सभी देखें

नवीनतम

नीबू हल्‍दी से कैंसर ठीक करने का नुस्‍खा बताकर फंसे नवजोत सिंह सिद्धू, ठोका 850 करोड़ का केस

सुबह नाश्ते में इस सफेद चीज का सेवन बढ़ाएगा आपकी याददाश्त, तेज दिमाग के लिए जरूर करें ये वाला नाश्ता

ये है अमिताभ बच्चन की फिटनेस का सीक्रेट: 82 की उम्र में फिट रहने के लिए खाते हैं इस पौधे की पत्ती

बढ़ता प्रदूषण आपकी स्किन को भी पहुंचा रहा है नुकसान, जानें कैसे करें अपनी स्किन केअर प्लान

क्या आपका ब्रश दे रहा है बीमारियों को न्योता, ओरल हेल्थ के लिए कब बदलना चाहिए ब्रश

अगला लेख