दुर्गोत्सव पर कविता : आई हो मां जो इस दफा

गरिमा मिश्र तोष
मां आई हो जो इस दफा तो जाना नहीं
रुको देखो जरा गिरते हुए मानदंडों को
बिखरते मुक्त स्वप्नों को
 
देखो कितना सन्नाटा सा फैला है
हर चूड़ी की खनक डरती है
 
कि कहीं उसकी आवाज न दब जाए
हर चमकीली मुस्कान सहमती है
 
कि कहीं वह कुचल न दी जाए
देखो मां कितनी चरमराती है व्यवस्था
सम्मान की
 
कैसे शिथिल हुई जा रही है 
तुम सी ही उर्जा
बिना किसी सबल संकल्प के
 
कितनी ही मांएं घायल हैं, भूखी हैं
सदियों से स्व की खोज में 
प्यासी हैं स्व के ओज से
 
देखो मां आई हो जो इस दफा तो जाना नहीं
 
जबकि तुम ही अन्न हो, पात्र भी तुम
तुम ही भूख हो, मांगने वाला हाथ भी तुम
 
तुम ही आग हो, जलने वाली काया भी तुम
तुम ही वस्त्र हो और खींचने वाली माया भी तुम
 
तुम ही देह हो और उसमें दौड़ती श्वास भी तुम
रुक जाओ देखो जरा
नतमस्तक हुए शीश भी तुम और समक्ष श्री रूप भी तुम
रुको जब तक सभी प्रश्नों के उत्तर मिलते नहीं 
 
देखो मां जो आई हो इस दफे तो जाना नहीं
 
देखो मां जो आई हो इस दफे तो जाना नहीं...॥
 
दुर्गोत्सव की शुभकामनाएं सभी को...। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

जीवन की ऊर्जा का मूल प्रवाह है आहार

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डाक्टर्स और एक्सपर्ट

इतना चटपटा चुटकुला आपने कभी नहीं पढ़ा होगा: इरादे बुलंद होने चाहिए

अगला लेख