कविता : नहीं चाहिए चांद

सुबोध श्रीवास्तव
मुझे
नहीं चाहिए चांद/और
न ही तमन्ना है कि
सूरज
कैद हो मेरी मुट्ठी में
हालांकि
मुझे भाता है
दोनों का ही स्वरूप।
 
सचमुच
आकाश की विशालता भी
मुग्ध करती है
लेकिन
तीनों का एकाकीपन
अक्सर
बहुत खलता है
शायद इसीलिए
मैंने कभी नहीं चाहा कि
हो सकूं
चांद/सूरज और आकाश जैसा।
 
क्योंकि
मैं घुलना चाहता हूं
खेतों की सौंधी माटी में
गतिशील रहना चाहता हूं
किसान के हल में।
 
खिलखिलाना चाहता हूं
दुनिया से अनजान
खेलते बच्चों के साथ।
 
हां, मैं चहचहाना चाहता हूं
सांझ ढले/घर लौटते
पंछियों के संग-संग।
 
चाहत है मेरी
कि बस जाऊं/वहां-वहां
जहां
सांस लेती है ज़िंदगी
और/यह तभी संभव है
जबकि
मेरे भीतर ज़िंदा रहे
एक आम आदमी।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

कुत्तों के सिर्फ चाटने से हो सकती है ये गंभीर बीमारी, पेट लवर्स भूलकर भी न करें ये गलती

कब ली गई थी भारत के नोट पर छपी गांधी जी की तस्वीर? जानें इतिहास

सावन में इस रंग के कपड़े पहनने की वजह जानकर चौंक जाएंगे आप

क्या ट्रैफिक पुलिस आपकी स्कूटी की चाबी ले सकती है? जानें कानूनी सच्चाई और अपने अधिकार

किस मुस्लिम देश से भारत आए हैं समोसा और जलेबी, जिनके लिए तम्बाकू और सिगरेट की तरह लिखना होगी चेतावनी

सभी देखें

नवीनतम

20 मजेदार वेडिंग एनिवर्सरी विशेज, शादी की सालगिरह पर इस फनी अंदाज में दें दोस्तों को शुभकामनाएं

बाम या आयोडेक्स से नशा जैसा क्यों होता है? जानिए इसके पीछे की साइंटिफिक सच्चाई

क्या 32 बार खाना चबाने से घटता है वजन? जानिए क्या है माइंडफुल ईटिंग

बालों की ग्रोथ बढ़ाने के लिए करें ये 5 योगासन, नेचुरल तरीके से पाएं लंबे और घने बाल

क्यों ब्लड डोनेट करते हैं आर्मी के डॉग्स, जानिए किस काम आता है ये खून

अगला लेख