हिन्दी कविता : सिया जू की प्यारी मिथिला नगरिया

राकेशधर द्विवेदी
सिया जू की प्यारी मिथिला नगरिया 
देखो बरात ले के आए हैं 
लक्ष्मण राम संवरिया
बरात को देखकर सखिया मुस्काई
कनवा में धीरे-धीरे फुसफुसाई
एक सखी बोली कि
नीखे-नीखे राम हैं
लक्ष्मण है प्यारे-प्यारे
बड़का कमाल है
कांधे पे धनुष बाएं
ऊंच-ऊंच भाल है
सिरवा पे मुकूट सोहे
सिंहा जैसी चाल है
दुल्हा के देख के 
जनकपुर निहाल है
देखो न मोरी सखी
सियाजू के कैसन सुंदर भाग्य है
युवराजन के देख कर
राजा जनक निहाल हैं
जनकपुर में शहनाई बाजे
मंगल गीतन की बरसात है
दुल्हा के देखकर 
जनकपुर निहाल है।
 

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