हिन्दी कविता : त्रासदी

सुबोध श्रीवास्तव
इसमें
तुम्हारा दोष कतई नहीं है
कि तुम
आदमियत से
हैवानियत की ओर मुड़ते
अपने कदमों को
खामोशी से ताक रहे हो।
 
क्योंकि
यह नजरिया तो
तुम्हें मिला है विरासत में
और अपनी संस्कृति में
बंधे रहना ही
तुम्हारी पहचान है।

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