तीन तलाक बिल पर कविता : विराम

Webdunia
-संगीता केसवानी
 
सदियों पुरानी रीत है बदली,
एकतरफा ये जीत है बदली।
 
है विराम मेरी बेबसी का,
है लगाम तेरी नाइंसाफी का।
 
न पर्दे से इंकार है, 
ना संस्कारों से तक़रार है।
 
अब अपने फैसलों का मुझे भी अधिकार है,
रौंद सके मेरे जीवन को तुझे अब न ये इख्तियार है।
 
अब ना अश्क-ए-आबशार होगा,
ना हर पल डर का विचार होगा।
 
सुखी-निश्चिंत हर परिवार होगा,
मेरे भी हक़ में ये बयार होगा।
 
सायरा, गुलशन, इशरत, आफरीन, आतिया का संघर्ष रंग लाया,
मजबूरी से मज़बूती की जंग का सुखद परिणाम आया।
 
ना हूं केवल वोट-बैंक या ज़ाती मिल्कियत,
अब जाके पाई मैंने भी अपनी अहमियत,
तुम सरताज तो मैं शरीके-हयात।
 
पाक ये रिश्ता-ए-निकाह ना होगा तल्ख तलाक से तबाह,
न तलाक-ए-बिद्दत,
ना तलाक-ए-मुग़लज़ाह,
कर पाएगा इस रूह-ए-पाक का रिश्ता तबाह।
 
सो मेरी जीत मैं तुम्हारी जीत,
और तुम्हारी जीत में मेरी शान।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

मेडिटेशन करते समय भटकता है ध्यान? इन 9 टिप्स की मदद से करें फोकस

इन 5 Exercise Myths को जॉन अब्राहम भी मानते हैं गलत

क्या आपका बच्चा भी हकलाता है? तो ट्राई करें ये 7 टिप्स

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

अगला लेख