कविता : सब मिलकर मतदान करें

राकेश श्रीवास्तव 'नाजुक'
लोकतंत्र की लाज बचाने,
वालों की पहचान करें।
घर से निकलें बाहर आएं
सब मिलकर मतदान करें।

 
अपने अधिकारों की खातिर।
हम सबको लड़ना होगा।
चाटुकारिता औ' लालच से।
दूर सदा रहना होगा।
 
चोर-उचक्कों से क्या डरना,
आओ हम ऐलान करें।
घर से निकलें बाहर आएं।
सब मिलकर मतदान करें।
 
मूलभूत आवश्यकताओं,
पर जो हर पल काम करे।
उसे बनाएं अपना मुखिया,
जो न कभी आराम करे।
 
देश को सबसे पहले पूजे,
उसका हम सम्मान करें।
घर से निकलें बाहर आएं,
सब मिलकर मतदान करें।
 
संसद की गरिमा को जो भी,
धूमिल-धूसरित करता है।
राष्ट्रहित में उसे नकारें,
जो भ्रष्टों पे मरता है।
 
कोई भी प्रश्नों का मिलकर,
चलिए हम निदान करें।
घर से निकलें बाहर आएं,
सब मिलकर मतदान करें।

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