क्यों करवाया जाता है घर में गरुड़ पुराण का पाठ?

WD Feature Desk
मंगलवार, 11 मार्च 2025 (15:03 IST)
Garuda Purana paath: गरुड़ पुराण में जीवन और मृत्यु के हर रूप का वर्णन किया गया है। जब भी कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसके परिजन घर में गीता या गरुड़ पुराण का पाठ करवाते हैं। यह पाठ 10 या 13 दिनों तक चलता है। आखिर यह पाठ क्यों करवाते हैं? इसके पीछे कई कारण है जिसके चलते यह पाठ रखा जाता है। आओ जानते हैं क्यों करवाया जाता है घर में गरुड़ पुराण का पाठ?
 
कब तक रहती है आत्मा घर में?
उपनिषद कहते हैं कि अधिकतर मौकों पर तत्क्षण ही दूसरा शरीर मिल जाता है फिर वह शरीर मनुष्य का हो या अन्य किसी प्राणी का। पुराणों के अनुसार मरने के 3 दिन में व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है इसीलिए तीजा मनाते हैं। कुछ आत्माएं 10 और कुछ 13 दिन में दूसरा शरीर धारण कर लेती हैं इसीलिए 10वां और 13वां मनाते हैं। कुछ सवा माह में अर्थात लगभग 37 से 40 दिनों में दूसरा शरीर धारण कर लेती हैं या पितृलोक, दिव्य लोक आदि जगह चली जाती है। 
 
बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्हें 40 दिन बाद भी शरीर नहीं मिलता। उनमें से अधिकतर घटना, दुर्घटना में मारे गए या आत्महत्या वाले लोग ही ज्यादा होते हैं। ऐसे लोग यदि प्रेत या पितर योनि में चला गया हो, तो यह सोचकर 1 वर्ष बाद उसकी बरसी मनाते हैं। अंत में उसे 3 वर्ष बाद गया में छोड़कर आ जाते हैं। वह इसलिए कि यदि तू प्रेत या पितर योनि में है तो अब गया में ही रहना, वहीं से तेरी मुक्ति होगी।
 
आत्मा को मोहबंधन से मुक्ति करके उसकी मुक्ति और सद्गति के लिए पढ़ते हैं गरुड़ पुराण: 
1 से 13 दिनों तक गुरुड़ पुराण या गीता का पाठ पढ़ने से आत्मा उसे सुनती है। सुनकर वह जीवन और मृत्यु के चक्र को समझ जाती है और उसका मन फिर भगवान में लगने लगता है। इस तरह वह धीरे धीरे मुक्त होकर अपनी अगली यात्रा पर निकल जाती है। 
 
गीता और गुरुड़ पुराण के पाठ के साथ ही आत्मा की शांति हेतु कई उपाय बताए गए हैं। इसमें मृत आत्मा हेतु तर्पण करना, सद्कर्म करना (दान, पुण्य और गीता पाठ), पिंडदान करना, मृत आत्मा की अधूरी इच्छा को पूर्ण करना प्रमुख है। यह कार्य कम से कम तीन वर्ष तक चलने चाहिए तभी मृत आत्मा को मुक्ति मिलती है। तर्पण करने, धूप देने आदि से मृत आत्माएं तृप्त होती है। तृप्त और संतुष्ट आत्माएं ही दूसरा शरीर धारण कर सकती है या वैकुंठ जा सकने में समर्थ हो पाती है।

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