लुटती धरती, सिसकते लोग...

भारत की सीमाओं पर खतरे में है आजादी

अनिरुद्ध जोशी
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उपर आप जो चित्र देख रहे हैं, वो पहले के भारत का नक्क्षा है। यदि हम आ ज क े भारत का नक्शा बनाएं तो आपको दुख होगा क्योंकि यह तो हमारे भारत का नक्शा नहीं है  जो आजादी के समय हमें मिला था।   आजादी के   बाद हजारों वर्ग किलोमीटर के भारतीय भू-भाग पर चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश का कब्जा है, जिसे कभी भी भारत ने वापस लेने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया। जब आजादी के बाद जो हमें मिला उसे ही सहेज के नहीं रख नाए तो अखंड भारत वाली तो कल्पना ही छोड़ दीजिए। ऐसा   लगता  है  कि  ह म धीरे - धीरे    अपपी   आजादी  खोते जा रहे हैं।

आज भी भारत-पाक सीमा विवाद, भारत-चीन सीमा विवाद और भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद हमारे गले की हड्डी बना हुआ है। चीन के साथ 1962 का युद्ध, पाकिस्तान के साथ 1947, 1965 और 1971 का युद्ध और 1999 के कारगिल का युद्ध हमें गहरे दर्द दे गया है।

इस सबके बावजूद भारतीय नेतृत्व अपनी सीमाओं के प्रति सजग नहीं है और सीमाओं पर लगातार हो रही घुसपैठ ने सीमाओं पर खतरे को और बढ़ा दिया है। आजादी के बाद से भारत लगातार सीमाओं पर मार खाता रहा है। शहीदों की लिस्ट बढ़ती जा रही है और सरकार संसद में बहस करने में लगी है। पूरा देश बहस और बयान में उलझा है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है?

 

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अरुणाचल, सिक्किम, लेह-लद्दाख, कश्मीर और अक्साई चिन के एक बहुत बड़े भू-भाग पर चीन का कब्जा है। भारत का नेतृत्व इस संबंध में कभी गंभीरता से कोई न तो वार्ता करता है और न ही कोई सैन्य कार्रवाई के लिए कदम उठाता है। सरकने की नीति के तहत चीन घुसता ही जा रहा है और भारतीय सेना चीन के आक्रमक रुख और भारतीय नेतृत्व के आगे बेबस है।

जवाहरलाल नेहरू के शासन में चीन ने 1962 में भारत पर अचानक आक्रमण कर दिया था तब भारतीय नेतृत्व को समझ में नहीं आया कि अब क्या करें। उस वक्त 'हिंदी चीनी भाई भाई' का नार देने वाले चीन के प्रधामंत्री चाऊ-एन-लाई ने नेहरू को धोखे में रखा और चुपके से चीनी सेना को भारतीय क्षेत्र में घुसने का आदेश दे दिया।

1962 भारत-चीन युद्ध का कारण : सन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद वर्ष 1959 में तिब्बत में हुए तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो चीन भड़क गया और भारत-चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं होना शुरू हो गई।

युद्ध का दूसरा कारण हिमालय क्षेत्र का सीमा विवाद था। भारत इस भ्रम में रहा कि सीमा का निर्धारण ब्रिटिश सरकार के समय सुलझा लिया गया है लेकिन चीन इससे इनकार करता रहा। भारत ने चीन की बातों को कभी गंभीरता से नहीं लिया। इसके चलते चीन ने भारतीय सीमा के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के लद्दाख वाले हिस्से के अक्साई-चिन और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर अपना दावा जताया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और माओत्से तुंग के बीच कई वार्ताओं के बाद भी मसला नहीं सुलझा, जिसका परिणाम युद्ध के रूप में सामने आया।

भारत-चीन युद्ध और चीन ने हड़प रखे ये भारतीय भू-भाग...


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भारत-चीन युद्ध : भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को लड़ा गया था। दोनों देशों के बीच ये युद्ध करीब एक महीने तक चला, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना हुई। दूसरी ओर नेहरू चीन के सात नरमी से पेश आए जिसके चलते भारत को अपना बहुत बड़ा भू-भाग खोना पड़ा।

चीनी सेना ने 20 अक्टूबर, 1962 को लद्दाख और पूर्वोत्तर में अरुणाचल के क्षेत्रों की पारम्परिक सीमा का उल्लंघन करते हुए 'मैकमोहन रेखा' के पार एक साथ हमले किए और पश्चिमी क्षेत्र में चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में त्वांग पर कब्जा कर लिया। कब्जे के बाद चीन की सेना ने 20 नवम्बर, 1962 को एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

भारत के यह चाहने के बावजूद कि एक निश्चित सीमांकन हो, चीन को ऐसी सीमा मंजूर नहीं थी। चीन का मन बदल गया और उसने युद्धविराम के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा को सीमा के रूप में घोषित कर दिया।

चीन ने लद्दाख और पूर्वोत्तर में अरुणाचल के क्षेत्रों की पारम्परिक सीमा का उल्लंघन किया। ये सीमाएं भी चीन के लिए पूरी तरह मान्य नहीं थीं। कोलंबो शक्तियों ने 1962 के युद्ध के बाद हस्तक्षेप किया और भारत तथा चीन दोनों को वहां से 26.5 मीटर पीछे जाने के लिए कहा, जहां उनकी सेनाएं खड़ी थीं। भारत इसी के अनुसार पीछे हट गया, लेकिन चीन नहीं हटा। उसकी सेनाओं ने अभी तक उन सीमाओं पर कब्जा कर रखा है।

त्वांग से 60 किमी की दूरी पर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) है। यह अरुणाचल का हिस्सा है, लेकिन चीन लगातार अरुणाचल में घुसने का प्रयास करता रहा। अरुणाचल प्रदेश को अपने देश में सम्मिलित करने की कई बार कोशिश की है लेकिन राज्य की जनता के विरोध के चलते उसे अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिल पाई है।

युद्ध में सेना का नुकसान : भारत-चीन युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक मारे गए, जबकि 1047 घायल हुए। इसके अलावा 1700 सैनिक आज तक लापता हैं और 3968 सैनिकों को चीन ने गिरफ्तार कर लिया था। वहीं दूसरी ओर चीन के कुल 722 सैनिक मारे गए और 1697 घायल हुए। इस युद्ध में भारत की ओर से मात्र बारह हजार सैनिक चीन के 80 हजार सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे।

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अक्साई चिन : चीन जम्मू-कश्मीर के लद्दाख से अक्साई चिन तक तथा पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश को वह अपना हिस्सा मानता है। लगभग स्वीटजरलैंड के बराबर वाले भाग अक्साई चिन के कुछ हिस्सों पर चीन ने अधिकार कर रखा है जबकि यह भारत का हिस्सा है। उसने 1957 में अक्साई चिन में निर्माण कार्य भी किया जिसका पता भारत को करीब एक साल बाद चीन का नक्शा देखकर चला। चीन ने काराकोरम पास के जरिए तिब्बत और जिनसियांग प्रांत को जोड़ने वाले एकमात्र माग पर भी कब्जा कर लिया है।

अरुणाचल प्रदेश को उसने अपने कब्जे वाले तिब्बत का हिस्सा माना है। तिब्बत के साथ अंग्रेजों के शासनकाल में 1913-14 में सर हेनरी मैकमोहन के नेतृत्व में भारत का समझौता हुआ। 4057 मिटर की ऊंचाई वाली हिमालय की चोटियों पर चीन का नियंत्रण है। नीचे भारत की सैनाएं हैं।

1963 में पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर का 4000 किलोमीटर का हिस्सा सौंप दिया था, जिस पर चीन ने कराकोरम हाइवे बनाया था। चीन की इस हाइवे के साथ ही रेलवे लाइन बनाने की योजना है।

अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भाग था, पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं आता है। ये 1962 से चीनी नियंत्रण में है। जम्मू एवं कश्मीर को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा कहलाती है- LAC... ।

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मैकमोहन रेखा : 1914 में शिमला में उस समय के ब्रिटिश भारत सम्राजय, तिब्बत और चीन के बीच तिब्बत की स्थिति को निर्धारित करने के लिए विवादित समझौता हुआ था। बाद में चीन इस बातचीत से हट गया था और इस समझौते की शर्तों को मानने से इंकार कर दिया था। इसी समझौते के तहत ब्रिटिश भारत और तिब्बत की सीमा को निर्धारित करने के लिये इस समझौते को कराने वाले ब्रिटिश सचिव सर मैकमोहन के नाम पर 890 किलोमीटर लम्बी मैकमोहन रेखा बनाई गई। भारत जहां इस रेखा को तिब्बत और चीन से अधिकारिक सीमा मानता है वहीं चीन इसे अवैध करार देता रहा है।

सर मैकमोहन ने भारत और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची। इसे मैकमोहन लाइन नाम दिया गया था। तिब्बत से 1959 में दलाई लामा के निर्वासन के बाद चीन तथा भारत के बीच तनाव बढ़ा और जिस चीन को 1951 में सबसे पहले भारत ने विश्व मंच पर राजनयिक मान्यता दी थी उसी ने 1962 में भारत के पंचशील जैसे शांति सिद्धांत को ठुकराते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया।

भारत का कहना है कि विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल 4,000 किलोमीटर है जबकि चीन इसे 2,000 किलोमीटर बताता है। यह विवाद अरुणाचल प्रदेश में है जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है।

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पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर : यदि जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर के भारत में विलय की जिम्मेदारी सरदार पटेल को सौंपी होती तो आज संपूर्ण कश्मीर भारत का हिस्सा होता लेकिन नेहरू ने इस मामले को खुद हेंडल किया और हम देखते हैं कि इसका क्या परिणाम निकला।

भारत की आजादी और विभाजन के दौरान पाकिस्तान ने कबाइलियों के माध्यम से कश्मीर के आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया था जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। आजादी के 63 साल बाद भी भारत-पाकिस्तान के बीच यह मुद्दा बरकरार है।

पाक अधिकृत कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन के जिन्जियांग उयघूर स्वायत्त क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती हैं। पाकिस्तान इसे आजाद कश्मीर कहता है, लेकिन यहां के मूल कश्मीरियों में शिया मुसलमानों और पंडितों को बाहर खदेड़ दिया गया है। अब वहां पाकिस्तानी लोग रहते हैं जिनके सौ से अधिक आतंकी शिविर हैं।

कश्मीर के उत्तरी इलाके पर पाकिस्तान का कब्जा है जिसे गिलगिट-बाल्टिस्तान का नाम दिया गया है। पाकिस्तान सरकार इस बात पर हमेशा अड़ी रही है कि 72,000 किलोमीटर का यह इलाका महाराजा हरि सिंह के राज्य जम्मू-कश्मीर का हिस्सा कभी नहीं था। पाकिस्तान 1935 की संधि का हवाला देते हुए कहता है कि महाराजा हरि सिंह ने इसे ब्रिटिश भारत को लीज पर 60 साल के लिए दिया था। लेकिन पाकिस्तान भूल जाता है कि माउंटबेटन ने इस संधि को आजादी से एक महीने पहले जुलाई 1947 में भंग कर दिया था और महाराजा हरि सिंह को गिलगिट सौंप दिया था।

गिलगिट-बाल्टिस्तान (5,135 वर्ग मील) में लगभग 40 लाख लोग रहते हैं जिसमें पाकिस्तान के अन्य इलाकों से लाकर पाकिस्तानी लोग बसा दिए गए हैं। तथाकथित आजाद कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद है और इसमें 8 जिले, 19 तहसीलें और 182 संघीय काउंसिलें हैं।

आजाद कश्मीर के मीरपुर ‍िडवीजन में ज‍िला भिम्बर, ज‍िला कोटली और जिला मीरपुर, मुजफ्फराबाद ‍िडवीजन में जिला बाग, जिला मुजफ्फराबाद और जिला नीलम जबकि पुंछ रावलाकोट ‍डिवीजन में जिला पूंछ, रावलाकोट और जिला सुधनती शामिल हैं।

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चीन को दिया कश्मीर : 1963 में पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर का 4000 किलोमीटर का हिस्सा सौंप दिया था, जिस पर चीन ने कराकोरम हाइवे बनाया था। चीन की इस हाइवे के साथ ही रेलवे लाइन बनाने की योजना है।

पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग, ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिए जाने का भारत ने विरोध किया था लेकिन विरोध करने से क्या होता है? शेष क्षेत्र को दो भागों में विलय किया गया था उत्तरी क्षेत्र (गिलगिट-बाल्टिस्तान) एवं आजाद कश्मीर। संयुक्त राष्ट्र सहित अधिकांश अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे एमएसएफ और रेडक्रॉस द्वारा इस क्षेत्र को पाक-अधिकृत कश्मीर ही कहा जाता है।

अक्साई चिन नामक क्षेत्र जो पूर्व जम्मू एवं कश्मीर राज्य का भाग था, पाक अधिकृत कश्मीर में नहीं आता है। ये 1962 से चीनी नियंत्रण में है। जम्मू एवं कश्मीर को अक्साई चिन क्षेत्र से अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा कहलाती है- LAC... ।

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एलओसी पर लगातर घुसपैठ और राज्य तथा केंद्र शासन की उदासीनता के चलते भारत के भीतर द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी सेना और मुजाहिदीन कब्जा करके बैठ गए थे। कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में नियंत्रण रेखा के पार घुसपैठ करने की साजिश के पीछे तत्कालीन पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख परवेज मुशर्रफ को जिम्मेदार माना जाता है।

मई 1999 में एक लोकल ग्वाले से मिली सूचना के बाद बटालिक सेक्टर में ले. सौरभ कालिया के पेट्रोल पर हमले से उस इलाके में घुसपैठियों की मौजूदगी का पता चला। शुरू में भारतीय सेना ने इन घुसपैठियों को जिहादी समझा और उन्हें खदेड़ने के लिए कम संख्या में अपने सैनिक भेजे, लेकिन जवाबी हमले और एक के बाद एक कई इलाकों में घुसपैठियों के भारी संख्या में मौजूद होने और एक योजनाबद्ध ढंग से और बड़े स्तर पर की गई भारतीय सीमा पर कब्जा करने की रणनीति का पता चला। इस घुसपैठ ने भारतीय सेना और भारतीय नेतृत्व के कान खड़े कर दिए।

अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार ने सेना को आदेश दिए कि घुसपैठियों को किसी भी कीमत पर खदेड़ दिया जाए। आदेश पाकर भारतीय सेना ने शुरू किया 'ऑपरेशन विजय', जिसमें 30,000 भारतीय सैनिक शामिल थे।

भारतीय सेनाओं ने इस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना तथा मुजाहिदीनों के रूप में उसके पिट्ठुओं को परास्त किया। दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था और आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत पा ली गई। यही दिन अब ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

माना जाता है कि भारत ने इस ‘ऑपरेशन विजय’ का जिम्मा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से करीब 2 लाख सैनिकों को सौंपा था। जंग के मुख्य क्षेत्र कारगिल-द्रास सेक्टर में करीब 30 हजार सैनिक मौजूद थे। इस युद्ध के बाद पाकिस्तान के 357 सैनिक मारे गए, लेकिन बताया जाता है कि भारतीय सेना की कार्रवाई में उसके 4 हजार सैनिकों की जान गई। भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए और 1,363 अन्य घायल हुए। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है।

कारगिल युद्ध का कारण : आमतौर पर कारगिल युद्ध को भी 1947-48 तथा 1965 में पाकिस्तानी सेना द्वारा कबाइलियों की मदद से कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिशों के तहत देखा जाता है। वास्तव में कारगिल युद्ध कश्मीर हथियाने और भारत को अस्थिर करने के जिहादियों के 20 वर्ष से जारी अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। कश्मीर के लिए पाकिस्तान का प्रॉक्सी वॉर जारी है।

जारी है भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद...


भारत और बांग्लादेश मुक्ति मोर्चा ने मिलकर सन् 9171 में पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराया। बांग्लादेश की आजादी के बाद भारत से लगी बांग्लादेश की सीमा का कभी अधिकृत तौर पर पुख्ता सीमांकन नहीं किया गया जिसके चलते दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही।

भारत के 5 राज्यों पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, असम और त्रिपुरा की 4,095 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ जुड़ी हुई है।

पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल में कई स्थानों का सीमांकन नहीं हुआ है। पूर्वोत्तर की कुछ भूमि पर बांग्लादेश दावा करता रहा तो पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों को भी बांग्लादेश अपना हिस्सा बताता रहा जिसके चलते दोनों देशों के संयुक्त कार्यदल की कई वार्ताएं हुईं, लेकिन सीमा विवाद पर ध्यान देने के बजाय दोनों देशों ने व्यापार संबंधों पर विशेष ध्यान दिया जिसके चलते सीमा विवाद उपेक्षित बना रहा।

अगस्त 2011 में यह दावा किया गया कि दोनों देशों ने अपना सीमा विवाद सुलझा लिया है। भारत और बांग्लादेश ने 4,156 किलोमीटर लंबी अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमा को अंतिम रूप दिया और नक्शों पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही दशकों से चल रहा सीमा विवाद सुलझ गया।

समाचार पत्र 'डेली स्टार' में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बांग्लादेश के उच्चायुक्त तारिक अहमद करीम एवं बांग्लादेश में भारत के उच्चायुक्त राजीत मित्तर ने 1,149 नक्शों पर हस्ताक्षर किए।

सीमा निर्धारण दल के प्रमुख एवं संयुक्त गृह सचिव (राजनीतिक) कमाल उद्दीन अहमद ने कहा कि इनमें से आधे नक्शे बांग्लादेश में बनाए गए और शेष भारत में तैयार किए गए। बीडी न्यूज 24 डॉट कॉम के मुताबिक अहमद ने कहा, 'दोनों देशों के प्रतिनिधियों द्वारा जांच के बाद नक्शों को अंतिम रूप दिया गया।'

अहमद ने कहा कि दोनों देशों के उच्चायुक्त अब प्रत्येक नक्शे की 8 प्रतियों पर हस्ताक्षर करेंगे। मौजूदा सीमा को हालांकि दोनों देशों से मान्यता मिली हुई है, फिर भी नक्शों पर हस्ताक्षर हो जाने से यह कानूनी तौर पर पुख्ता हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच पूर्वोत्तर में 6.5 किलोमीटर लंबी पट्टी का सीमांकन होना अभी बाकी है। अहमद ने कहा कि दोनों देशों के प्रतिनिधि इस हिस्से के नक्शों को जल्द ही अंतिम रूप देंगे।

उल्लेखनीय है कि भारत और पूर्वी पाकिस्तान के बीच सीमांकन 1947 में शुरू हुआ था। सीमांकन के प्रारंभिक मसौदे पर 1956 में हस्ताक्षर किए गए थे। बाद में यह प्रक्रिया बंद कर दी गई थी। भारत के 111 क्षेत्र फिलहाल बांग्लादेश के अधीन हैं जिसमें 37,000 लोग रहते हैं। इसी तरह बांग्लादेश के 51 क्षेत्र भारत में पड़ते हैं जिसमें 14,000 लोग रहते हैं।

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