भारत में मुगल कब और कैसे आए, जानिए मुगलों के देश में आने से लेकर पतन की पूरी दास्तान

WD Feature Desk
शनिवार, 19 जुलाई 2025 (14:41 IST)
history of Mughals in India: भारतीय इतिहास में मुगल साम्राज्य का आगमन एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उपमहाद्वीप की राजनीति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यह एक ऐसा दौर था जिसने भारत की संस्कृति और इतिहास में सिरे से बदलाव किए और देश की सदियों पुरानी सभ्यता पर गहरे प्रहार किए। लेकिन, मुगल भारत में कैसे आए और इसकी नींव किसने रखी ये समझने वाली बात है। आइए, इतिहास के पन्नों को पलटकर भारत में मुगलों के आगमन से पतन तक की पूरी यात्रा को जानते हैं। 

मुगल वंश का संस्थापक: जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का शुरुआती जीवन

मुगल साम्राज्य की शुरुआत 1526 में हुई, और इस विशाल वंश का संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर था। बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 को मध्य एशिया के फरगना घाटी (आधुनिक उज़्बेकिस्तान में अन्दीझ़ान नामक शहर) में हुआ था। वह अपने पिता उमर शेख मिर्ज़ा (द्वितीय) की ओर से तैमूर लंग का पाँचवाँ और अपनी माता कुतलुग निगार ख़ानम की ओर से मंगोल शासक चंगेज़ खान का चौदहवाँ वंशज था।

कम उम्र में ही, मात्र 12 साल की आयु में, बाबर को फरगना का शासक बनाया गया। हालांकि, उसे अपने चाचाओं और उज़्बेगों के आक्रमणों के कारण कई असफलताओं का सामना करना पड़ा और कई सालों तक निर्वासन में जीवन बिताना पड़ा। इस दौरान उसने समरकंद जैसे शहरों को जीतने का प्रयास किया, लेकिन अपनी पैतृक भूमि पर स्थायी रूप से शासन स्थापित करने में विफल रहा। 1504 ईस्वी में, बाबर ने काबुल पर अधिकार कर लिया, और यहीं से उसकी भारत विजय की महत्वाकांक्षा ने जन्म लिया।

बाबर का भारत आना और पानीपत की पहली लड़ाई
बाबर ने 1519 से 1525 तक भारत पर कई बार छोटे-मोटे आक्रमण किए, जिसका उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक स्थिति को समझना और अपनी शक्ति का विस्तार करना था। उस समय दिल्ली सल्तनत पर लोदी वंश का शासन था, जिसके अंतिम शासक इब्राहिम लोदी थे। भारत की आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता और लोदी वंश के विरोधियों (जैसे पंजाब के गवर्नर दौलत खान और राणा सांगा) के निमंत्रण ने बाबर को भारत पर एक बड़े आक्रमण के लिए प्रेरित किया।

भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का श्रेय पानीपत के प्रथम युद्ध को जाता है, जो 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में बाबर की सेना, जो संख्या में लोदी की विशाल सेना से काफी कम थी, ने अपनी उन्नत सैन्य रणनीति (तुलुगमा पद्धति) और तोपखाने के प्रभावी उपयोग के कारण शानदार जीत हासिल की। यह पहली बार था जब भारत में किसी युद्ध में तोप का प्रयोग किया गया था। इब्राहिम लोदी इस युद्ध में मारा गया, और इस विजय के साथ ही दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया। बाबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया, और इस प्रकार भारत में मुगल वंश की नींव रखी गई।

खानवा की लड़ाई: राजपूत शक्ति को चुनौती
पानीपत की जीत के बाद, बाबर को भारत में अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए राजपूतों की चुनौती का सामना करना पड़ा। मेवाड़ के शक्तिशाली शासक राणा सांगा ने बाबर को भारत से खदेड़ने का संकल्प लिया। 16 मार्च 1527 को आगरा के पास खानवा नामक गाँव में बाबर और राणा सांगा के नेतृत्व वाले राजपूत परिसंघ के बीच खानवा का युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में भी बाबर ने अपनी सैन्य कुशलता और तोपखाने का प्रभावी उपयोग किया। बाबर ने इस युद्ध को 'जिहाद' (धर्मयुद्ध) घोषित कर अपनी सेना का मनोबल बढ़ाया। इस निर्णायक युद्ध में राणा सांगा की हार हुई, जिससे भारत में बाबर की स्थिति और मजबूत हो गई।

घाघरा की लड़ाई: अफगानों पर अंतिम प्रहार
खानवा की जीत के बाद भी, बाबर को भारत में अफगानों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। अफगान शासक महमूद लोदी (इब्राहिम लोदी का भाई) और बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह के नेतृत्व में अफगानों ने अपनी शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया। 6 मई 1529 को बिहार में घाघरा नदी के किनारे बाबर और अफगानों के बीच घाघरा का युद्ध लड़ा गया। यह युद्ध इतिहास में अपनी अनोखी प्रकृति के लिए जाना जाता है, क्योंकि यह जमीन और पानी दोनों पर लड़ा गया था। इस युद्ध में भी बाबर विजयी रहा, और अफगानों की शक्ति पर निर्णायक अंकुश लगा। यह बाबर द्वारा भारत में लड़ा गया अंतिम बड़ा युद्ध था।

बाबर की मृत्यु और मुगल साम्राज्य की अवधि
इन लगातार जीतों के बाद, बाबर ने भारत में अपने साम्राज्य को स्थापित किया, जो सिंधु से बिहार और हिमालय से ग्वालियर तक फैला हुआ था। हालांकि, बाबर को भारत में शासन करने के लिए बहुत कम समय मिला। 26 दिसंबर 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई। उसे शुरुआत में आगरा में दफनाया गया था, लेकिन बाद में उसकी इच्छा  के अनुसार काबुल में बाग-ए-बाबर गार्डन में दफनाया गया।

बाबर के बाद, उसके पुत्र हुमायूं ने शासन किया, जिसके बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासकों ने मुगल साम्राज्य को चरम पर पहुंचाया। मुगल शासन 17वीं शताब्दी के आखिर में और 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक अपने चरम पर रहा, जिसने लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया।

हालांकि, 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। कमजोर उत्तराधिकारियों, आंतरिक संघर्षों, क्षेत्रीय शक्तियों के उदय और बाहरी आक्रमणों के कारण मुगल सत्ता धीरे-धीरे कमजोर होती गई। 19वीं शताब्दी के मध्य तक, मुगल साम्राज्य नाममात्र का रह गया था, और अंततः 1857 के सिपाही विद्रोह के बाद ब्रिटिश राज द्वारा इसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया। अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर को रंगून निर्वासित कर दिया गया, जिससे भारत में मुगल शासन का औपचारिक अंत हो गया।

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