राजा सुहेलदेव कौन थे, क्या थी उनकी जाति?

Webdunia
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021 (15:17 IST)
उत्तर प्रदेश सरकार बहराइच में राजा सुहेलदेव की याद में उनका स्मारक बना रही है जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिलान्यास किया। राजा सुहेलदेव का बहराइच और श्रावस्ती जिले में राज्य था। आओ जानते हैं सुहेलदेव के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
कौन थे राजा सुहेलदेव : सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के राजा थे, जिन्होंने महमूद गजनवी के भांजे गाज़ी सैयद सालार मसूद को युद्ध में बुरी तरह पराजित किया था। इसी कारण उनकी चर्चा होती है। इस बात का उल्लेख चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की किताब एजाज-ए-खुसरवी में मिलता है। 1034 में सुहेलदेव की सेना ने मसूद की सेना के बीच लड़ाई हुई थी।
 
महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने सिंधु नदी के पार तत्कालीन भारत के कई हिस्सों पर अपना कब्जा जमा लिया था। लेकिन जब उसने बहराइच को अपने कब्जे में लेना चाहा तो उसका सामना महाराजा सुहेलदेव से हुआ और सुहेलदेव वे उसे और उसकी सेना को धूल चटा दी थी। इस युद्ध में मजूद गाजी बुरी तरह घायल हो गया था और बाद में उसकी मौत हो गई थी। 
 
मुगल राजा जहांगीर के दौर में अब्दुर रहमान चिश्ती ने 'मिरात-इ-मसूदी' नामक किताब लिखी। इस दस्तावेजी किताब को गाज़ी सैयद सालार मसूद की बायोग्राफी माना जाता है। इस किताब के अनुसार गाज़ी सैयद सालार साहू के साथ भारत पर हमला करने आया था। अपने पिता के साथ उसने इंडस नदी पार करके मुल्तान, दिल्ली, मेरठ और सतरिख (बाराबंकी) तक जीत दर्ज की थी। बाद में उसने बहराइच पर हमला किया लेकिन राजा सुहेलदेव ने उसे बुरी तरह धूल चटा दी थी। घायल होने के बाद मौत से पहले उसकी इच्छानुसार उसे बहराइच में ही दफना दिया गया था। अब तो उसकी कब्र मजार और फिर दरगाह में बदल गई। पहले इस जगह पर हिंदू संत और ऋषि बलार्क का एक आश्रम था।
 
 
हालांकि कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गजनवी के समाकालीन इतिहासकार इस युद्ध का जिक्र नहीं करते हैं। महमूद गजनवी के समकालीन इतिहासकारों में मुख्‍य तौर पर उतबी और अलबरूनी थे। हो सकता है कि उन्होंने इस भयानक हार का जिक्र इसलिए नहीं किया हो क्योंकि यह उनके लिए शर्म की बात होती।
 
जाति को लेकर विवाद : वर्तमान में सुहेलदेव की जाति को लेकर विवाद है। उत्तर प्रदेश में कई जातियां सुहेलदेव राजा के अपनी जाति का होने का दावा ठोकती हैं। हालांकि कई वर्षों से राजा को सुहेलदेव राजभर कहा जाता रहा है, परंतु राजपूत समाज को इस पर ऐतराज है। राजपूत समाज मानता है कि राजा राजपूत थे। कई लोग उन्हें पासी समुदाय का भी मानते हैं।
 
 
अंग्रेज गजटियर अनुसार सुहेलदेव राजपूत राजा थे, जिन्होंने 21 राजाओं का संघ बनाकर मुस्लिम बादशाहों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। 1950 में कभी स्कूल टीचर रहे गुरु सहाय दीक्षित द्विदीन की एक कविता 'श्री सुहेल बवानी' में सुहेलदेव को जैन राजा बताया गया है।
 
'फ़ैसिनेटिंग हिन्दुत्व: सैफ़्रॉन पॉलिटिक्स एंड दलित मोबिलाइज़ेशन' के लेखक समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर बद्री नारायण का मानना था कि वे भर समुदाय से थे। राजभर और पासी दोनों ही समुदाय के लोग उन्हें अपना नायक मानते हैं। मिरात-ए-मसूदी के बाद के लेखकों ने सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत, भारशिव या फिर नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है। आर्य समाज और आरएसएस का मानना है कि सुहेलदेव एक हिन्दू राजा थे और उनकी जाति पर विवाद करना व्यर्थ है।

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