Hanuman Chalisa

चमत्कारिक संत हैं तैलंग स्वामी, जहर का भी नहीं होता था असर, जानिए परिचय

WD Feature Desk
शनिवार, 4 जनवरी 2025 (12:35 IST)
Tailang Swami Jayanti:10 जनवरी 2025 को श्री तैलंग स्वामी जी (1607-1887 ई.) की 418वीं जयंती मनाई जाएगी। इस दिन पुत्रदा एकादशी रहेगी। तैलंग स्वामी भारत के महान योगी और संतों में से एक थे, जिन्हें उनके अलौकिक चमत्कारों और गहन तपस्या के लिए जाना जाता है। उन्हें शिव भगवान का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी (काशी) में बिताया और वहां अनेक भक्तों और साधकों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया। तैलंग स्वामी अद्वैत वेदांत के अनुयायी थे। उनका मानना था कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। उन्होंने संन्यास और साधना के द्वारा आत्म-साक्षात्कार प्राप्त किया।ALSO READ: महान समाज सुधारक संत गाडगे महाराज का निर्वाण दिवस, जानें अनसुनी बातें
 
पूरा नाम: श्री गणपति सरस्वती
लोकप्रिय नाम: तैलंग स्वामी
जन्म: 1607 ईस्वी, विजयनगर साम्राज्य (वर्तमान में आंध्र प्रदेश, भारत)
जन्म स्थान: तैलंग स्वामी का जन्म आंध्र प्रदेश के विजयनगरम के होलिया में हुआ था। 
मृत्यु: 1887 ईस्वी, वाराणसी (उत्तर प्रदेश, भारत)
जीवन अवधि: लगभग 280 वर्ष
 
विशेषताएँ और चमत्कार:
अलौकिक शक्तियां: कहा जाता है कि तैलंग स्वामी पानी पर चलते थे और गंगा नदी पर घंटों ध्यान करते थे। ये गंगा की लहरों पर घंटों आसन लगाकर बैठे रहते थे। इन्हें विष देने का प्रयास किया गया लेकिन विष का उनके शरीर पर कोई असर नहीं हुआ। इसके संबंध में कई तरह के चमत्कार की कहानी जुड़ी हुई है
लंबा जीवन: माना जाता है कि वे लगभग 280 वर्षों तक जीवित रहे। वे करीब 150 वर्षों तक तो वाराणसी में ही रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि इनसे मिलने श्रीराम कृष्‍ण परमहंस जी भी आए थे।।
साधना का केंद्र: वाराणसी में गंगा तट पर उन्होंने वर्षों तक कठिन तपस्या की।
 
जीवन परिचय:
तैलंग स्वामी अपने जीवन का अधिकांश समय भारत के वाराणसी में रहे। ऐसा माना जाता है कि तैलंग स्वामी भगवान शिव के अवतार थे। जिसके कारण कुछ शिष्य उन्हें वाराणसी के चलते फिरते शिव के रूप में संदर्भित करते थे। उनके माता-पिता, भगवान शिव के भक्त, ने उनका नाम शिवराम रखा। जब वह 40 वर्ष के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने समाज का त्याग कर दिया और बीस वर्षों तक साधना की। बाद में वह तीर्थयात्रा पर चले गए। ऐसा माना जाता है कि वह 1733 में प्रयाग पहुंचे और 1737 में वाराणसी में बस गए।
 
गुरु, शिष्य और प्रभाव:
त्रैलंग स्वामी से परमहंस योगानंद के गुरु के गुरु लाहिड़ी महाशय भी मिले थे। तैलंग स्वामी का प्रभाव अनेक योगियों और साधकों पर पड़ा। रामकृष्ण परमहंस ने भी उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त की थी और उन्हें ‘जीवित शिव’ कहा था।
 
तैलंग स्वामी का निधन और समाधि स्थल:
1887 में उन्होंने वाराणसी में महासमाधि ली। उनकी समाधि वाराणसी में स्थित है, जहां आज भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। आज भी वाराणसी में पंचगंगा घाट पर स्थित उनकी समाधि पर आध्‍यात्‍म के जिज्ञासु देश-विदेश से पहुंचते हैं।
 
तैलंग स्वामी के उपदेश: तैलंग स्वामी का मुख्य संदेश था कि आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए साधना, संयम, और अहंकार का त्याग आवश्यक है। तैलंग स्वामी भारतीय संत परंपरा में अद्वितीय स्थान रखते हैं और उन्हें योग और तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Mangal Gochar 2025: तुला राशि में मंगल का प्रवेश, इन 4 राशियों के लिए चुनौतीपूर्ण समय

Shraddha Paksha 2025: नवजात की मृत्यु के बाद शास्त्र के अनुसार कैसे करना चाहिए श्राद्ध

Solar eclipse 2025: सूर्य ग्रहण 2025: क्या 21 सितंबर का ग्रहण भारत में दिखेगा?

Navratri Story 2025: नवरात्रि पर्व की कहानी

Sharadiya navratri 2025: शारदीय नवरात्रि में प्रारंभ हो गई है गरबा प्रैक्टिस, जानिए गरबा उत्सव के नियम

सभी देखें

धर्म संसार

Shardiya navratri 2025: शारदीय नवरात्रि की तिथियों की लिस्ट, अष्टमी और नवमी कब जानें

Budh gochar 2025: बुध ने बदली चाल, ये राशियां हो जाएंगी मालामाल, नौकरी में तरक्की व्यापार में मुनाफे के योग

shradh 2025: अर्पण और तर्पण में क्या है अंतर? जानें क्यों पितृपक्ष में तर्पण है सबसे महत्वपूर्ण

Shardiya navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का उत्सव कब से मनाया जा रहा है, जानें इतिहास

Shraddha Paksha 2025: श्राद्ध पक्ष में द्वादशी तिथि के श्राद्ध का महत्व, विधि, जानिए कुतुप काल मुहूर्त और सावधानियां

अगला लेख