सात साल से हर होली पर इंदौर के सनावदिया गांव में सात दिन तक घुलते हैं सात रंग प्रकृति के

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इंदौर के पास देवगुराड़िया मंदिर के आगे एक गांव है सनावदिया। यह गांव आज किसी भी पहचान का मोहताज नहीं है। पर्यावरण को लेकर जितने भी बड़े और महत्वपूर्ण काम हो रहे हैं उन सबकी शुरुआत यहीं से होती है। यहां एक छोटी-सी पहाड़ी पर एक पर्यावरण अनुकूल घर है जहां रहती हैं सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मश्री डॉ. जनक पलटा मगिलिगन। पूरा गांव और अब तो शहर ही नहीं बल्कि पूरा देश उन्हें जनक दीदी के नाम से पुकारता है। 
 
साल भर जनक दीदी पर्यावरण, प्रकृति, स्वच्छता, औद्योगिक आत्मनिर्भरता, पृथ्वी, पौधारोपण, बीज भंडारण, जल और ऑर्गेनिक खेती को लेकर इतने इवेंट, आयोजन, कार्यशाला और प्रशिक्षण कार्यक्रम करती हैं कि उनकी गूंज देश भर में सुनाई पड़ती हैं। चाहे कोई मौसम हो, चाहे कोई दिवस या चाहे कोई पर्व या त्योहार... जनक दीदी और उनकी पर्यावरण हितैषी टीम पूरी मुस्तैदी और समर्पण से तैयार रहती है अपने शुभ संकल्पों के साथ। 
 
होली का रंगारंग पर्व हमने 21 तारीख को मनाया, लेकिन जनक दीदी के जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में यह 7 दिवसीय उत्सव 14 मार्च 2019 से मन रहा है। जनक दीदी प्राकृतिक रंगों के निर्माण का यह आयोजन पिछले 7 सालों से कर रही हैं। वे कहती हैं हम सात सालों से हर होली पर सात दिन तक प्रकृति के सात रंग चुनते हैं। उन्हें घर में मुफ्त बनाना सिखाते हैं। इस आयोजन में हमारे साथ शामिल होते हैं आसपास के गांवों के अलावाम मूक-बधिर बच्चे, स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कई गैर सरकारी संगठनों के पर्यावरण हितैषी और वे लोग जो इन रंगों को बनाकर अपना रोजगार चलाते हैं और होली के दिनों में आय प्राप्त करते हैं। इस वर्ष भी यह 7 दिवसीय आयोजन 14 मार्च से 20 मार्च 2019 तक संपन्न हुआ। आइए जानते हैं इस वर्ष आयोजित जनक दीदी के इस रंग निर्माण उत्सव की सिलसिलेवार जानकारी - 
 
प्रथम दिन : 14 मार्च 2019 : आर्यमा सान्याल ने किया शुभारंभ 
  
प्रथम दिन प्राकृतिक रंग बनाने के प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ श्रीमती आर्यमा सान्याल, निदेशक, देवी अहिल्या बाई होलकर एयरपोर्ट, इंदौर के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। प्रथम दिन प्रशिक्षुओं ने पोई, पारिजात, अंबाड़ी, गुड़हल, गुलाब, टेसू जैसे फूलों व संतरा, अनार, शह्तूत जैसे फलों तथा पालक व चुकंदर जैसी सब्जियों से रंग बनाना सीखा। इस अवसर पर आर्यमा सान्याल ने कहा जनक दीदी का हर कदम प्राणियों में सदभावना को समर्पित है, स्वच्छता अभियान में शहर को प्लास्टिक व कचरा मुक्त करना हो या सोलर कुकर के उपयोग से प्राकृतिक रंग बनाना, वे इसे दिल से करती है और स्वयं जिस संकल्प को रात-दिन जीती हैं वही संदेश सबको देती हैं। धरती मां की जय करती है और आकाश को भी प्रदूषण मुक्त करने का बीड़ा उठाया है। मैं आज अपने को धन्य समझती हूं। पर्यावरण हितैषी जनक दीदी पिछले सात साल की तरह इस बार फिर जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर होली महोत्सव मनाने के लिए प्राकृतिक रंग निर्माता, प्रशिक्षक व इन रंगों को बनाकर उद्योग करना सिखा रही हैं। प्रथम दिन महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के 35 गैर सरकारी संगठनों ने सीखा। 
दूसरा दिन : 15 मार्च 2019 : अनाथ बच्चों ने जाने कितने रंग हैं प्रकृति में           
 
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर चोरल डैम, मेड़, खुर्दा, खुर्दी, बड़गोंदा गांव के पलाश के जंगलों के मालिक व टिगरिया गांव नन्दबाग स्थित चैतन्य धाम आश्रम से अनाथ बच्चों ने जनक पलटा मगिलिगन के साथ पलाश पोई, गुलाब व अम्बाडी से प्राकृतिक रंग बनाए। 
 
रंगों को बनते देख उनके चेहरों की चमक, रंग व उत्साह देखते ही बनता था। उनके उमंग से परिपूर्ण शब्द थे असली होली होगी पहली बार। सेंटर पर उपस्थित मुंबई के विट्टी इंटरनेशनल स्कूल के तीन युवा काव्य पंडित, कुश नायक व लक्ष तथा देवास व भिंड के पुलिस अधिकारी भी रंग निर्माण कार्यशाला में इतनी सहजता से रंग सीख कर अचंभित हो उठे। 
 
कार्यशाला में शामिल पलाश के जंगल मालिकों ने कहा आज समझ में आया पलाश शुद्ध सोने जैसा है इस बार अपने परिवारों व गांव वालों के साथ अपने बनाए रंगों से ही खेलेंगे और इन्हीं रंगों को बेचेंगे। जनक दीदी ने सभी का मार्गदर्शन किया। हमारा असली भारत तो गांव में बसता है। गांव के किसान इस तरह के प्रशिक्षण के बाद मालिक की तरह काम कर आत्मनिर्भर हो सकते हैं। शान से रह सकते हैं। किसानों ने कहा कि वे रंग बनाना सीख कर पलाश का रंग महू व आसपास के अलग-अलग मार्ग पर बेचेंगे जैसे लोग भुट्टे बेचते हैं। आश्रम के बच्चे भी असली होली के रंग खुद बना कर शुद्ध होली खेलेंगे और आसपास भी सबको सिखाएंगे।  
तीसरा दिन : 16 मार्च 2019 : गुलाब से बना गुलाल, चुकंदर से बना रानी रंग  
 
रंग निर्माण की कार्यशाला के तीसरे दिन इंदौर के तिलक नगर, मूसाखेड़ी, देवगुराड़िया, कंपेल, दुधिया, उमरिया और आसपास के स्कूली छात्र और उनके शिक्षकों ने जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशक जनक पलटा मगिलिगन के साथ सबसे पहले उनके सेंटर पर लगे प्राकृतिक फूल गुलाब, गुड़हल, अंबाडी, पोई, संतरा, अनार, पारिजात, शहतूत आदि के पेड़, पौधे और बेल देखी। 
 
फिर सोलर ड्रायर में सूख रहे पलाश, टेसू, चुकंदर गुलाब, अम्बाडी की पंखुड़ियां, संतरा व अनार के छिलके आदि को देखा और जाना कि कैसे इन्हें पीसकर व सूखाकर प्राकृतिक रंग तैयार किए जाते हैं। 
 
उसके बाद सरल तकनीक से रंग बनाने का व्यावहारिक सत्र शुरू किया गया। सभी रंग सीखने वालों ने होली का सबसे प्रचलित रंग पोई से बनाया यह रानी (उन्नाबी) रंग 7 मिनट में तैयार हो गया। टेसू और अंबाडी 2 मिनट में। 
 
पोई के छोटे-छोटे फलों और टेसू के फूलों को गर्म पानी में मिलाया गया। इसके बाद हल्के सूती कपड़े के छान लिया। बच्चे तुरंत तैयार रंगों को देख कर खुशी से चहकने लगे।   
 
पोई का मुंह पर लगाने वाला रंग बहुत शोख था, जिसमें बस पोई को अपने हाथों से मसला और तुरंत ही हाथों पर चटख रंग फैल गया। होली का यह असली रंग देखना सभी के लिए जादुई अनुभव था। मेंहदी की तरह अपने दोनों हाथों पर इन प्राकृतिक रंगों को देख सभी उत्साहित थे। 
 
जनक दीदी ने एक-दूसरे के चेहरे पर लगा कर बताया इससे त्वचा कैमिकल युक्त रंगों की तरह खराब नहीं होगी उल्टे और अधिक खूबसूरत हो जाएगी। नर्म, मुलायम, चिकनी और चमकदार हो जाएगी यहां तक कि ये रंग बिना किसी साबुन लगाए बहुत कम पानी से धुल जाएंगे। त्वचा से रंग छुड़ाने की परेशानी से भी ये रंग बचाते हैं। 
 
उन्होंने कहा कि रासायनिक रंग बहुत महंगे हैं, हानिकारक हैं साथ ही उनके प्लास्टिक पैकेट से बहुत प्रदूषण होता है, इन रंगों से त्वचा की एलर्जी होती है, आंखों और गले के लिए ये हानिकारक हैं। हमारे पास पीने के लिए आवश्यक पानी नहीं है, रासायनिक रंगों से छुटकारा पाने के लिए, कपड़े धोने में 10 गुना पानी कहां से लाएंगे। रासायनिक रंगों से बीमारी, समय की बर्बादी, ऊर्जा का क्षरण, पर्यावरण का नुकसान और मानसिक तनाव होता है। 
 
रासायनिक रंग हिंसा का कारण बनते हैं जबकि प्राकृतिक रंग प्रेम बढ़ाते हैं और हम प्रकृति और त्योहार की सराहना करते हैं। 
शामिल प्रतिभागियों में से कुछ ने केरोसीन और हानिकारक रसायनों के साथ मिश्रित रंगों के बुरे अनुभव को भी साझा किया और बताया कि इनसे जान का बहुत खतरा है। जब लड़कियों को बोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया तो उन्होंने कहा कि वे होली खेलने से बहुत डरती हैं और घर में रहना पसंद करती हैं क्योंकि दुर्व्यवहार या उत्पीड़न होने से बहुत असुरक्षित महसूस करती हैं। सभी सहभागियों ने इस होली को प्राकृतिक बनाने का संकल्प लिया। विट्टी इंटरनेशनल स्कूल मुंबई के तीन युवा काव्य पंडित, कुश व लक्ष्य टेसू के फूलों को मुंबई ले गए हैं ताकि वापस घर जाकर प्राकृतिक होली खेल सकें क्योंकि मेट्रो सिटी में उन्होंने ऐसे फूल आज तक नहीं देखे। 
चौथा दिन : 17 मार्च 2019 : स्वस्थ, सुंदर और सुरक्षित होली का संदेश सब जगह पंहुचाना है 
 
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर पर्यावरण व प्रकृति बचाने के लिए स्वस्थ, सुंदर व् सुरक्षित होली के लिए प्राकृतिक रंग निर्माण प्रशिक्षण का यह चौथा दिन है। इस दिन मध्यप्रदेश भोपाल के EPCO में स्टेट नॉलेज मैनेजमेंट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज (SKMCCC)के जलवायु परिवर्तन और सतत विकास के वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और नीतिगत अनुसंधान विद्वान व शिल्पियों के समूह ने प्रतिभागिता दी। 
 
इस दिन भी पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य पर रासायनिक हानिकारक रंगों के उपयोग के बुरे प्रभावों के बारे में बताया गया। होली के लोकप्रिय त्योहार को खुशनुमा बनाने के लिए कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों ने बहुत दिलचस्पी व उत्साह दिखाया और संकल्प लिया कि अपने परिवार व कार्यस्थल पर सभी की होली प्राकृति‍क रंगों से खुशनुमा बना देंगे। 
 
पांचवा दिन : 18  मार्च 2019 : प्रोफेसर 20,000 छात्रों को होली के लिए ऑर्गेनिक रंग बनाना सिखाएंगे
 
इस दिन सरस्वती शिशु मंदिर, बलवाड़ा, विजय शिक्षा अकादमी, महू, इंदौर, राजस्थान, उदयपुर, अग्रणी पब्लिक स्कूल इंदौर, मेडी-कैप्स के सहायक प्रोफेसर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आदि ने रंग निर्माण का प्रशिक्षण लिया। 
 
इनमें जैन दिवाकर कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. संगीता भरुका, सिद्धार्थ जिंदल, सनद और सीमा जिंदल, श्वेता जिंदल, सुरभि पाल, ऋषि पाल, निशा कुमारी, सुल्तान राज आदि ने रंग बनाना सीखा व सिखाया।   
 
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक रंग बनाने के तरीके सीख कर वे सभी 20,000 छात्रों को होली खेलने के लिए ऑर्गेनिक रंग बनाना सिखाएंगे । 
 
छठा दिन : 19 मार्च 2019 : किसानों को आजीविका के नए अवसर 
 
जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर प्राकृतिक रंग बनाने की एक कार्यशाला में छठे दिन भी निदेशक जनक पलटा मगिलिगन ने प्राकृतिक रंग बनाने की विस्तृत जानकारी दी और रंगों को तैयार करने का प्रशिक्षण प्रदान किया। इस दिन कार्यशाला में बायोटेक्नोलॉजिस्ट रिमझिम जोशी के साथ बायो टेक्नोलॉजी के शोधार्थियों ने भाग लिया तथा स्वयं सूखे व गीले रंग बनाए। 
 
डॉ. पलटा ने बताया कि ऑर्गेनिक रंग स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ बनाने में आसान भी हैं। गुलाब की पंखुड़ियां, संतरे के छिलके, चुकंदर, पोई, पलाश के फूलों से रंग सुगंध भी देते हैं और नुकसान भी नहीं पंहुचाते। इस दिन कार्यशाला में आई लड़कियों ने कहा कि त्वचा को नुकसान पहुंचने व एलर्जी के डर से वे होली से हमेशा दूर रहा करती थीं, पर यह रंग बनाने व वापरने के बाद इस त्योहार को लेकर बहुत उत्साहित हैं। डॉ. पलटा ने कहा, प्राकृतिक रंगों को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना चाहिए, जिससे लोग सुरक्षित होली का आनंद ले सकें, साथ ही ग्रामीणों व किसानों को आजीविका के नए अवसर प्राप्त हो सके।
सातवां और अंतिम दिन : मार्च 20, 2019 : मूक-बधिर व विशेष बच्चों ने लिया रंगों का आनंद 
                                    
कार्यशाला के अंतिम दिन पहली बार मूक-बधिर व विशेष बच्चों ने इको फ्रेंडली रंग बनाने का आनंद लिया। सप्ताह भर प्राकृतिक रंग प्रशिक्षण शिविर का रंगबिरंगा-खुशबूदार समापन दिनांक 20 मार्च 2019 को हुआ। 
 
आनंद सर्विस सोसायटी विजय नगर के मूक बधिर व सेवाधाम आश्रम उज्जैन की कन्याओं ने टेसू,पोई, गुलाब, बोगनवेलिया, अंबाड़ी, चुकंदर से  प्राकृतिक रंग को बनाया। 
 
जनक दीदी के साथ मोनिका एवं ज्ञानेंद्र पुरोहित ने सारी बातों को सांकेतिक भाषा में अनुवाद कर समझाया। मूक-बधिर बच्चों ने सांकेतिक भाषा में इस पहली बार के सुखद अनुभव को बहुत प्रेरणात्मक व आनंददायक बताया।  सभी ने रंग खेल कर आनंद लिया। जनक दीदी ने सभी को होली का तिलक  लगाया और बच्चे उनका आशीर्वाद पाकर बहुत खुश हुए। सभी ने वायदा किया कि अब सब लोग प्राकृतक होली मनाएंगे। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्रीमती स्मिता भारद्वाज (प्रबंध संचालक, मप्र वित्त विकास निगम) ने अपने उद्बोधन में कहा कि जनक दीदी प्रकृति व समाज की निस्वार्थ,कर्मठ, अनन्य सेविका हैं। सकारात्मक उर्जा का संचार करती है। उन्होंने सांकेतिक भाषा की अभिव्यक्ति से मूक-बधिर बच्चों की प्रशंसा की और उन्हें होली की शुभकामनाएं भी दी। इस अवसर पर राजेन्द्र सिंह, पंकज श्रोत्रिय, गोविन्द माहेश्वरी, निक्की सुरेका,नन्दा व् राजेंद्र चौहान भी उपस्थित थे। 
 
पिछले सात साल से हर होली पर जनक पलटा मगिलिगन अपने सात दिवसीय सात रंगों के प्रशिक्षण से बेहद आनंदित अनुभव कर रही हैं। उन्हें लगता है कि जो भी लोग सीखने आते हैं उनकी आत्मा पहले से तैयार होती है जब जाते हैं तो प्रफुल्लित होकर जाते हैं। हमारा सभी का मानव धर्म हमें ईश्वर प्रेम,प्रकृति प्रेम व् सद्कर्म सिखाता है। जीवन में सदभावना बढ़ानी है तो सभी का आध्यामिक कर्तव्य है कि प्रेम एकता व शांति बढ़ाएं। होली, दिवाली ईद,नवरोज़,क्रिसमस हो या प्रकाश पर्व अपनी संस्कृति को हम सब जीवित रखें... 

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