गढ़नी होगी राष्ट्रवाद की नई परिभाषा

Webdunia
शुक्रवार, 23 मार्च 2018 (22:30 IST)
इंदौर। शहीदों की बदौलत ही आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं मगर भारत को खंड-खंड करने का बीजारोपण आज भी देश की धरती में मौजूद हैं। आज देश में राष्ट्रवाद और राष्ट्रवाद के नए प्रतिमान और परिभाषा गढ़ने की आवश्यकता है। 
 
 
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस पर संस्था संघमित्र एवं जाग्रत युवा संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उक्त विचार समारोह में मौजूद वक्ताओं ने व्यक्त किए। इंदौर की महापौर श्रीमती मालिनी गौड़ ने कहा कि शहीदों के बलिदान की वजह से ही हम सब आजाद भारत में सांस ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी काम शुरू किया जाए तो देश के लोग भी साथ चल पड़ते हैं। 
 
इंदौर भाजपा के नगर अध्यक्ष कैलाश शर्मा ने कहा कि जब देश के युवाओं में भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, महाराणा प्रताप का भाव देशवासियों के दिलों में जाग जाएगा तो भारत परम वैभव को प्राप्त कर लेगा। हम शहादतों को भूलें नहीं बल्कि उसे हृदय में धारण करें और देश को उन्नति के मार्ग पर आगे ले जाएं। 
भाजपा नेता उमेश शर्मा ने कहा कि बलिदान की कोई उम्र नहीं होती। भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान से हम सब आनंदित और आल्हादित हैं। इन शहीदों ने उस समय जो क्रांति की रांगोली रची थी, उससे भारत का भविष्य तय हो गया था। उन्होंने कहा कि आज नवीन क्रांति की आवश्यकता है ताकि भारत तेरे टुकड़े होंगे... जैसे नारे लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे लोगों को प्रतिउत्तर दिया जा सके। दरअसल, भारत को खंड-खंड करने के वीज आज भी देश की धरती में मौजूद हैं।
 
कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि आज देश के भीतर लोगों के मन में सवाल उठता है कि राष्ट्रवाद ठीक है या नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश की आजादी के लिए बलिदान देना या फिर सीमा पर शहीद होना देशभक्ति का सर्वोच्च शिखर और प्रतीक है। लेकिन, हमसे गलती हुई कि हमने राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति के नए प्रतीक नहीं गढ़े। प्रतीकों को लेकर भावुक होने से देश आगे नहीं बढ़ सकता, देश आगे तब बढ़ेगा जब हम अच्छाइयों के साथ खड़े होंगे। 
 
उन्होंने कहा कि हम स्वार्थी हो गए हैं। हमने प्रतीकों की आड़ में अपने पाखंडों और आडंबरों को छिपा लिया है। हम बाहर से जितने आदर्शवादी हैं भीतर से उतने ही खोखले और पाखंडी हैं। हमें आत्मबल दिखाना होगा और अत्याचार और अनाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी। हमें राष्ट्रवाद की नई परिभाषा गढ़नी होगी। कार्यक्रम की शुरुआत में मशाल रैली निकाली गई। पुष्यमित्र भार्गव, भरत पारेख और पराख लोंढे ने अतिथियों को स्मृतिचिह्न प्रदान किए। आभार प्रदर्शन प्रबल भार्गव ने किया।

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