पराली ने घोला इंदौर की हवा में जहर, घरों तक आया काला कचरा, IIT Indore ने किया था अलर्ट, क्‍यों नहीं हो रही कार्रवाई?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025 (14:24 IST)
इंदौर भले ही देश में सबसे साफ शहरों की श्रेणी में नंबर एक हो, लेकिन अब प्रदूषण के मामले में यह शहर फिसड्डी होता जा रहा है। दरअसल, यहां का वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक होता जा रहा है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 1 अप्रैल से लगातार 100 के ऊपर बना हुआ है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है, AQI में भी इजाफा होता जा रहा है। दरअसल, पिछले कुछ दिनों से इंदौर के आसपास के इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं बढी हैं, जिससे शहर का प्रदूषण बढता जा रहा है। स्‍थिति यह है कि पराली का जला हुआ काला कचरा सीमाओं से लगे घरों में नजर आने लगा है।
क्‍यों नहीं हो रहे प्रदूषण रोकने के प्रयास : छोटी ग्वालटोली स्थित रियल टाइम पॉल्यूशन स्टेशन के मुताबिक 9 अप्रैल को शहर का AQI लेवल 236 तक पहुंच गया था। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक सोमवार को AQI 158 रहा, जबकि रविवार को यह 147 पर दर्ज किया गया। पीएम-10 और नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा में भी इजाफा नजर आया।

बता दें कि AQI का स्‍तर अगर 100 से ऊपर जाता है तो यह हेल्‍थ का कबाडा कर सकता है। बता दें कि हाल ही में आईआईटी इंदौर ने भी इस बारे में अपनी रिपोर्ट बनाकर आगाह किया था, बावजूद इसके प्रदूषण रोकने के कोई इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं।

इन इलाकों में क्‍यों नहीं रुक रही पराली की घटनाएं : बता दें कि इंदौर के आसपास फसलों की कटाई के बाद पराली यानी फसलों का बचा हुआ वेस्‍ट जलाने का काम किसान करते हैं। लेकिन खेतों की सफाई के लिए किसानों के लिए पराली जलाना भी जरूरी है, ऐसे में किसानों के विरोध की वजह से कई जिलों के कलेक्टर पराली जलाने की घटनाओं पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। जबकि केंद्रीय सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एनजीटी लगातार इस संबंध में कड़े दिशा-निर्देश जारी कर रहे हैं।

पराली जलाने के कहां कितने मामले : दरअसल, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक सेटेलाइट से डाटा कलेक्‍ट किया है। इस डाटा में सामने आया कि होशंगाबाद जिले में सबसे ज्यादा 292 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएं हुईं। इसके बाद छिंदवाड़ा, सागर, उज्जैन और सिहोर जैसे जिलों में भी जमकर पराली जलाई गई। इंदौर जिले में भी 186 स्थानों पर कचरा और पराली जलाने के मामले सामने आए हैं।

क्‍या कहा था आईआईटी इंदौर की रिपोर्ट ने : बता दें कि हाल ही में आईआईटी इंदौर ने एक स्टडी की थी। जिसम में खुलासा हुआ था कि मध्यप्रदेश में प्रदूषण का स्तर बेहद चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के लोग साल में औसतन 70 से 80 दिन बेहद प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जो पहले सिर्फ 15 से 25 दिन होते थे। हालांकि दिल्ली-एनसीआर और उत्तर प्रदेश की तुलना में मप्र का प्रदूषण स्तर थोड़ा कम है, फिर भी यह स्थिति चिंता का विषय है। यह स्‍टडी टेक्नोलॉजी इन सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित हुई थी।

80 दिन जहरीली हवा में सांस : बता दें कि अब तक दिल्‍ली, एनसीआर और यूपी जैसे राज्‍यों में ही प्रदूषित माना जाता था, लेकिन अब मध्‍यप्रदेश की हवा भी लगातार जहरीली होती जा रही है। अध्‍ययन में सामने आया कि मध्‍यप्रदेश के लोग हर साल 70 से 80 दिन बेहद खतरनाक हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। पहले यह साल में 15 से 25 दिन होती थी। हालांकि स्‍टडी कहती है कि मध्‍यप्रदेश में दिल्ली-एनसीआर और उप्र की तुलना में प्रदूषण कम है, लेकिन आईआईटी की रिपोर्ट का कहना है कि मौजूदा स्तर भी चिंताजनक है।


क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ, किसे है खतरा : प्रदेश में फैलते प्रदूषण के जहर को लेकर डॉक्‍टरों का मानना है कि चाहे वो वायू प्रदूषण हो या किसी तरह का नॉइज पॉल्‍यूशन हर तरह का प्रदूषण इंसानों के लिए खतरनाक है। सांस और फेफड़ों संबंधी रोगों के विशेषज्ञ डॉ रवि दोषी ने वेबदुनिया को बताया कि हवा में फैला किसी भी तरह का प्रदूषण हमारे फैफड़ों के लिए घातक है। कोरोना संक्रमण के बाद लोगों में इम्‍युनिटी का स्‍तर कम हुआ है। ऐसे में प्रदूषण सांस संबंधी बीमारियों को ज्‍यादा फैला रहा है। पिछले कुछ महीनों में एलर्जी के मरीजों की संख्‍या में हुई बढ़ोतरी इसका सबूत है।

डॉक्‍टरों के मुताबिक दिल, फेफड़ और तमाम तरह की सांस संबंधी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए यह प्रदूषण खतरनाक साबित होगा। बता दें कि हाल ही में इंदौर में दिल के दौरों से कई लोगों की मौत की घटनाएं सामने आई हैं।
रिपोर्ट : नवीन रांगियाल

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