कोयंबटूर, कोल्हापुर, मोहाली और इंदौर के डेली कॉलेज के छात्रों ने पदमश्री जनक पलटा मगिलिगन से सस्टेनेबल लिविंग सीखी

WD Feature Desk
शनिवार, 5 जुलाई 2025 (13:05 IST)
इंदौर के डेली कॉलेज जूनियर स्कूल के छात्रों द्वारा अपने प्रमुख कार्यक्रम 'इमर्स एंड इंस्पायर' के तहत जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में आयोजित राउंड स्क्वायर इंस्पायर्ड गतिविधियों का दूसरे दिन संचालन, सेंटर की निदेशक पदमश्री डॉ. (श्रीमती) जनक पलटा मगिलिगन ने आंख खोलने वाला अनुभव साबित हुआ। जिसमें उन्हें यह देखने का मौका मिला कि सस्टेनाबिलिटी को बहुत आसानी से रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल किया जा सकता है। 
 
सौर-पवन ऊर्जा और ज़ीरो वेस्ट के अपने अभिनव उपयोग के लिए जाने जाने वाले इस सेंटर ने सभी पर एक अमिट छाप छोड़ी। कोयंबटूर से एसएसवीएम, कोल्हापुर से एसजीआईएस, मोहाली से गिल्को इंटरनेशनल और इंदौर सहित विभिन्न एएफएस स्कूलों के छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। छात्रों में से एक ने सामुदायिक खाना पकाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बड़ी ऑटो-रोटेटिंग सोलर थर्मल डिश के प्रति आकर्षण व्यक्त किया, इसे 'कूल' कहा और कहा कि एक दिन अपना सोलर किचन बनाएगी। बिना गैस या बिजली के खाना पकते हुए देखकर वे इस बात को लेकर उत्साहित हो गए कि सौर ऊर्जा उनके अपने भविष्य का हिस्सा बनेगी। 
 
एक अन्य छात्र यह देखकर आश्चर्यचकित था कि कैसे एक साधारण कागज़ के टुकड़े पर सौर कुकर के माध्यम से केंद्रित सूर्य की रोशनी डालते ही वह तुरंत आग की लपट निकली। इस प्रयोग ने उन्हें सूर्य की प्राकृतिक शक्तिशाली ऊर्जा और इसके व्यावहारिक उपयोग के तरीकों की सराहना करने के लिए प्रेरित किया। हरे-भरे परिवेश और घने वृक्षारोपण ने बहुत बड़ा प्रभाव डाला। 
 
छात्र इस बात से आश्चर्यचकित थे कि केंद्र के पर्यावरण-अनुकूल डिज़ाइन ने एयर कंडीशनर के उपयोग के बिना इतना आरामदायक इनडोर तापमान बनाए रखा। उन्होंने सीखा कि पौधों की सोच-समझकर की गई व्यवस्था और प्राकृतिक वेंटिलेशन के उपयोग से कृत्रिम शीतलन की आवश्यकता समाप्त हो सकती है, और केंद्र में LPG का उपयोग भी न के बराबर है। 
 
बिना किसी कचरे के पूरी तरह से टिकाऊ घर की अवधारणा एक नई और रोमांचक खोज थी। एक छात्र ने बताया कि यह पहला घर था, जिसे उन्होंने कभी देखा था जहां हर चीज़ का पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण या खाद बनाया गया है था। इससे प्रेरित होकर, उन्होंने घर पर ऐसी आदतें अपनाने में गहरी दिलचस्पी दिखाई और यहां तक कि यह भी बताया कि वो उनके पिता, जो एक होटल व्यवसायी हैं, सोलर किचन बनाएंगे। 
 
सभी छात्र जीवनभर प्रकृति के प्रति इतनी समर्पित 77 वर्षीय जनक पलटा मगिलिगन, चंडीगढ़ अपने माता-पिता, अच्छी नौकरी छोडकर 40 साल पहले आदिवासी महिलॉओं को समाजिक, आर्थिक सशक्तिकरण के उद्देश्य से बहाई पायनियर आई और उनके जीवनसाथी ब्रिटिश नागरिक भी भारत में बहाई सेवा के लिए 25 साल सस्टेनेबल डेवलपमेंट करते हुए अपना जीवन सस्टेनेबल बनाया और एक सड़क दुर्घटना में उनका 2011 में निधन के बाद सनावादिया में यह घर बनाया। उनके बाद वे अकेली रहती है। 
 
जनक जी एक बुलंद महिला, बिना किसी से आर्थिक सहयोग और फीस के लाखों लोगों को सिखा चुकी है। आज उनके इस अद्भुत काम और जुनून से सभी बहुत प्रेरित हुए। हम सभी ने सीखा कि हमारे आस-पास की हर चीज़- सूरज से लेकर मिट्टी तक - रोज़मर्रा की समस्याओं को हल करने में हमारी सबसे बड़ी सहयोगी हो सकती है। यह विचार कि प्रकृति खाना पकाने और ऊर्जा साहसी उत्पादन जैसे बड़े कार्यों के साथ-साथ छोटे दैनिक उपयोग और भोजन की ज़रूरतों को पूरा कर सकते है, एक रहस्योद्घाटन था। 
 
इस यात्रा ने छात्रों को यह समझने में भी मदद की सस्टेनेबल जीवन का मतलब कठिन जीवन नहीं है- यह वास्तव में चीजों को सरल बना सकता है। सोलर ड्रायर, विभिन्न प्रकार के कुकरों का उपयोग करना और स्मार्ट प्लांटेशन तकनीकों का अभ्यास करना यह दर्शाता है कि पर्यावरण के प्रति जागरूक होना जीवन को कुशल और संतुष्टिदायक बना सकता है। सभी छात्र और कर्मचारी जिज्ञासा और जिम्मेदारी की नई भावना के साथ लौटे। यह यात्रा सिर्फ़ शिक्षाप्रद नहीं थी- यह प्रेरणादायक थी, जिसने युवा, विचारशील दिमागों में बदलाव के बीज बोए।
 
रिपोट: सुश्री दुर्गा सिंह, डेली कॉलेज 'राउंड स्क्वायर प्रतिनिधि'

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