Black hole : क्यों बह्मांड में जीवन का उद्गम हैं ब्लैक होल? जानें संपूर्ण जानकारी

राम यादव
मंगलवार, 17 जनवरी 2023 (00:30 IST)
नई खोजों के आधार पर खगोलविदों का मानना है कि ब्लैक होल अरबों वर्षों से वे मूल तत्व ब्रह्मांड में फैला रहे हैं, जिनसे जीवन की उत्पत्ति होती है। 
 
यदि ब्लैक होल न होते, तो हम भी आज इस पृथ्वी पर नहीं होते। वे ही जब-जब फुफकारते हैं, तब 'जेट' कहालाने वाली ऐसी ब्रह्मांडीय गैसों की प्रचंड धाराएं लाखों-करोड़ों प्रकाशवर्षों की दूरी तक अंतरिक्ष में फूंकते हैं, जिन में निहित मूलतत्वों से अनुकूल परिस्थितियों में जीवन अंकुरित होता है। ये मूलतत्व ब्रह्मांड के कोने-कोने में लगभग एक समान फैले हुए हैं। इस खोज में जर्मनी, जापान और नीदरलैंड सहित कई देशों का योगदान है।   
 
नीदरलैंड के नीमेगन शहर में रादबौउद नाम का एक विश्वविद्यालय है। वहां के शोधकों की एक टीम, खगोल विज्ञान के इतिहास में पहली बार, 2017 के वसंतकाल में, एक ब्लैक होल (हिंदी में कृष्ण विवर) का फ़ोटो लेना चाहती थी। यह काम किसी अकेले टेलिस्कोप से नहीं हो सकता था। अतः रेडियो खगोल विज्ञान के वहां के जर्मन प्रोफ़ेसर हाइनो फ़ाल्के और उनके दो सहयोगियों ने सोचा कि क्यों न दुनिया के सभी बड़े रेडियो टेलिस्कोपों को आपस में संयोजित कर एक नेटवर्क बनाया जाए।
 
प्रो. फ़ाल्के के शब्दों में, ''किसी ब्लैक होल को देख सकना ऐसा ही है मानो आप जर्मनी के कोलोन शहर में बैठकर न्यूयॉर्क में सरसों के एक दाने को, या नंगी आंखों से चंद्रमा पर कोई टेनिस बॉल देखना चाहते हैं।'' उल्लेखनीय है कि कोलोन और न्यूयॉर्क के बीच की सीधी हवाई दूरी 6000 किलोमीटर से भी अधिक है और चंद्रमा हमारी पृथ्वी से औसतन 3,84,000  किलोमीटर दूर रहता है। 
           
रेडियो टेलिस्कोपों का नेटवर्क : पृथ्वी पर से किसी ब्लैक होल का फ़ोटो लेने के लिए सिद्धांतः एक ऐसा टेलिस्कोप चाहिए, जो स्वयं भी पूरी पृथ्वी जितना बड़ा हो। यह संभव नहीं है। इसलिए प्रो. फ़ाल्के की टीम ने, अप्रैल 2017 में, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, यूरोप तथा एंटार्कटिका महाद्वीप पर के बड़े-बड़े रेडियो टेलिस्कोपों को मिलाकर एक नेटवर्क बनाया, जिसकी क्षमता 13 हज़ार किलोमीटर व्यास (डायमीटर) वाले किसी रेडियो टेलिस्कोप जितनी थी। यही हमारी पृथ्वी का भी व्यास है।
 
इन सभी रेडियो टेलिस्कोपों को 5 करोड़ 50 लाख प्रकाशवर्ष दूर की मेसियर-(Messier) 87 नाम की मंदाकिनी (गैलेक्सी) पर एकसाथ फ़ोकस किया गया। मेसियर-87, जिसे संक्षेप में 'एम-87' भी कहा जाता है, कन्या (वर्गो) नक्षत्र की 2000 मंदाकिनियों वाले एक झुंड का हिस्सा है। उसका ब्लैक होल बहुत ही बड़ा है। वैज्ञानिक 5 रातों तक उस पर टकटकी लगाए रहे। नियम है कि केवल हमारे सौरमंडल वाली गैलेक्सी को ही 'मिल्की वे' यानी 'आकाशगंगा' कहना चाहिए, बाक़ी सबको अंग्रेज़ी में गैलेक्सी और हिंदी में मंदाकिनी।
 
हर प्रकार के पदार्थ और प्रकाश को निगल जाने वाला कोई ब्लैक होल खुद कभी दिखाई नहीं पड़ता। केवल ऐसी रेडियो तरंगे उसका अता-पता दे सकती हैं, जो उसके आस-पास से आ रही हैं। अतः सबसे पहले परमाणु घड़ियों की सहायता से, एम-87 से आ रही और नेटवर्क के सभी रेडियो टेलिस्कोपों तक पहुंच रही रेडियों तरंगों का समय दर्ज किया गया। कंप्यूटरों की हार्ड डिस्क पर इन रेडियो तरंगों को सुरक्षित किया गया। बाद में उन्हें मिलाकर एक साझी एकल तरंग का रूप दिया गया। अंत में, कई प्रकार के कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से, 3000 टेरा बाइट के बराबर एकत्रित डेटा का इस तरह अध्ययन किया गया कि ब्लैक होल के आस-पास की एक सही तस्वीर बन सके।
 
ब्लैक होल का 'इवेन्ट हॉराइज़न' : यूरोप, अमेरिका और जापान के वैज्ञानिकों ने, एक-दूसरे से अलग, अपने-अपने कंप्यूटरों की सहायता से तीन मूलभूत तस्वीरें बनाईं। इसमें पूरे दो वर्ष लग गए। तब भी तीनों टीमों की तस्वीरें बिल्कुल एक जैसी थीं। इस तरह 2019 में पहली बार एक ऐसी तस्वीर बनी, जो किसी ब्लैक होल के 'इवेन्ट हॉराइज़न' के पास का दृश्य दिखाती हैं।
'इवेन्ट हॉराइज़न' वह घटना-क्षितिज है, जहां पहुंचते ही कोई गैस, चीज़ या प्रकाश की किरणें भी, ब्लैक होल की प्रचंड गुरुत्वकर्षण शक्ति की पकड़ में आ जाती हैं। हर चीज़ प्रकाश की गति के साथ अदृश्य ब्लैक होल में समा जाती है। यह घटना-क्षितिज खुद काले अंधकार से घिरा, ब्लैक होल से परे उसे अपनी चमक से घेरता एक ऐसा आभामंडल है, जिसका अपना व्यास भी एक खरब (1 ट्रिलियन) किलोमीटर के बराबर है! यह भी पता चला कि एम-87 मंदाकिनी का ब्लैक होल, हमारे सूर्य की अपेक्षा, साढ़े छह अरब गुना अधिक द्रव्यमान वाला है; यानी सूर्य से साढ़े छह अरब गुना अधिक भारी है। 
 
प्रो. हाइनो फ़ाल्के का कहना है, "इवेन्ट हॉराइज़न के पास की चमक प्रचंड गति के साथ ब्लैक होल में गिर रहे पदार्थ के गैसीय अणुओं-परमाणुओें के बीच तीव्र घर्षण से पैदा होती है। ब्लैक होल द्वारा खिंचते समय अयनीकृत गैस किसी भंवर की तरह लगभग प्रकाश की गति से घूमने लगती है। उसका तापमान क़रीब एक खरब डिग्री पर पहुंच जाता है।" 
 
इस तापमान पर भंवर की तरह घूमती परमतप्त गैस अलग-अलग दीप्ति के साथ चमकती हुई किसी विशाल तश्तरी-जैसी दिखती है। ब्लैक होल स्वयं नहीं दिखता। उसकी संपूर्ण द्रव्यराशि एकसमान होती है, यानी वह अपने आप में विशुद्ध एकत्व (सिंग्युलैरिटी) है। जैसे हम मानते हैं कि ईश्वर अद्वैत है, सभी भेदों-विभेदों से परे एकत्व है, उसी तरह किसी ब्लैक होल में पदार्थ की सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं।
 
प्रो. फ़ाल्के के अनुसार, ब्रह्मांड में अरबों-खरबों मंदाकिनियां हैं। अधिकतर के बीच में एक ब्लैक होल होता है। वह बहुत छोटा भी हो सकता है और अतिशय विराटकाय भी। अतिशय विराटकाय ब्लैक होल इतने विशाल होते हैं कि वे अपने भीतर— हमारी आकाशगंगा के सभी तारों की अपेक्षा— 10 गुनी अधिक ऊर्जा पैदा कर सकते हैं। समझा जाता है कि अपने भीतर की इस प्रचंड ऊर्जा के कारण वे अपने अक्ष (ऐक्सिस) पर प्रकाश-जैसी ऐसी तेज़ गति से घूमते हैं कि अक्ष के दोनों बहरी सिरों के पास से इलेक्ट्रॉन, पॉज़िट्रॉन जैसे मूल कणों की जेट-धारा फूट पड़ती है। यह जेट-धारा करोड़ों प्रकाशवर्ष जितनी लंबी दूरी तक जा सकती है।
 
इस बीच अत्यंत दूर के ऐसे ब्लैक होल भी वैज्ञानिकों की नज़र में आए हैं, जिन की आयु हमारे ब्रह्मांड की 13 अरब 80 करोड़ वर्ष की आयु से कुछ ही कम है। जापानी खगोलविद योशिकी मत्सुओका एक ऐसे ही वैज्ञानिक हैं। प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिका के हवाई द्वीप समूह वाले एक सुप्त ज्वालामुखी पर, 4000 मीटर की ऊंचाई पर एक जापानी वेधशाला है सुबारू। मत्सुओका उसके मुख्य टेलिस्कोप द्वारा अत्यंत दूर के क्वासर खोजते रहे हैं। क्वासर अंतरिक्ष की सबसे चमकदार चीज़ों में गिने जाते हैं, हालांकि वे कोई सच्चे तारे नहीं होते। उनकी चमक के पीछे वास्तव में कोई ब्लैक होल छिपा होता है। क्वासर का अर्थ है 'क्वासी-स्टार,' यानी 'तारे जैसा।'
 
कोई ब्लैक होल ख़ुद नहीं दिखता : कोई ब्लैक होल ख़ुद तो दिखता नहीं, दिखती हैं क्वासर जैसी उसके आस-पास की ऐसी चमकदार चीज़ें, जो हमारी आकाशगंगा के लाल तारे भी हो सकती हैं। अतः सच्चाई जानने के लिए वैज्ञानिकों को पता लगाना पड़ता है कि जिसे वे देख रहे हैं, वह चीज़ पृथ्वी से कितनी दूर है।

योशिकी मत्सुओका को 150 दिनों की सघन खोजबीन के बाद एक ऐसा क्वासर मिला, जो 12 अरब 90 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर था। इस बहुत ही लंबी दूरी का अर्थ है कि यह क्वासर ब्रह्मांड की उत्पत्ति वाले महाधमाके के कुछ ही समय बाद बन गया होगा। उसके पीछे छिपे ब्लैक होल का सुराग इस तुलना से मिला कि वह एम-87 वाली मंदाकिनी के ब्लैक होल की अपेक्षा दस गुनी अधिक ऊर्जा ब्रह्मांड में बिखेर रहा था।
 
योशिकी मत्सुओका और उनकी टीम ने इस बीच ब्रह्मांड के आरंभकाल वाले सौ से अधिक ब्लैक होल ढूंढ निकाले हैं। उन्होंने पाया कि बहुत पुराने ब्लैक होल नयों की अपेक्षा कहीं अधिक ऊर्जा बिखेरते हैं। उनका द्रव्यमान भी नयों की अपेक्षा कहीं अधिक होता है। नयों की सब कुछ खींचकर निगल जाने की भूख भी पुरानों जितनी बड़ी नहीं होती। उनका 'इवेन्ट हॉराइज़न' (घटना-क्षितिज) भी कम चमकीला होता है। मत्सुओका का कहना है कि ब्रह्मांड में हम जितनी अधिक गहराई में झांकते हैं, उतनी ही अधिक चमक-दमक पाते हैं। 
 
ब्रह्मांड का जन्म एक महाधमाके के साथ हुआ था। जन्म के समय वह गैस के घने बादलों के रूप में था। इन बादलों के घनीभूत होने से ढेर सारी द्रव्यराशि वाले बड़े-बड़े ब्लैक होल बने। संभवतः उन्होंने ही जीवन की उत्पत्ति लायक परिस्थितियां पैदा कीं। खगोल भौतिकी के इस पक्ष के अध्ययन के लिए चिली का अताकामा मरुस्थल एक आदर्श जगह है। साल में 300 बादल-रहित रातें और वहां जैसी अत्यत सूखी हवा कहीं और नहीं मिलती। वहां, 5000  मीटर की ऊंचाई पर, अधिकतर 12 मीटर व्यास के 66  चलायमान पैराबॉलिक एन्टेनों वाली एक अंतरराष्ट्रीय वेधशाला है 'अल्मा' —  अताकामा लार्ज मिलिमीटर-सबमिलीमीटर अर्रे। 
 
अब तक ज्ञात सबसे पुराना ब्लैक होल : 2017 में इस वेधशाला के वैज्ञानिक, एदुआर्दो बनियादोस भी, दूर अंतरिक्ष में क्वासर ढूंढ रहे थे। उन्हें क्वासर जैसे एक ऐसे ब्लैक होल का सुराग मिला, जिसकी द्रव्यराशि हमारे सूर्य से एक अरब गुनी अधिक थी, और दूरी थी 13 अरब प्रकाशवर्ष। यानी, वह ब्रह्मांड की उत्पत्ति के 80 करोड़ वर्ष बाद ही बन चुका था। वही अब तक ज्ञात सबसे पुराना ब्लैक होल है। उसके टेलिस्कोप-फ़ोटो में उसके अक्ष के दोनों सिरों पर से अयनीकृत पदार्थ वाले चमकीले जेट निकलते और 5-5 हज़ार प्रकाशवर्ष दूर तक जाते दिखते हैं। इससे प्रतीत होता है कि क्वासर या ब्लैक होल, ब्रह्मांड के आरंभकाल में ही अत्यंत गरम जेट पैदा करने लगे थे।  
 
ये जेट गैस और ऊर्जा के रूप में उन मूलकणों को ब्रह्मांड में बिखेरते हैं, जिनसे हम और हमें ज्ञात-अज्ञात सभी जीवित या निर्जीव चीज़ें, हवा और पानी, ग्रह और तारे— यानी वह सब बना है, जो दिखता है या नहीं भी दिखता। यही परम सूक्ष्म कण अपने स्थूल रूप में द्रव्य या पदार्थ कहलाते हैं। उन्हें 6 क्वार्क और 6 लेप्टोनों में वर्गीकृत किया गया है। उन्हीं से परमणु के एलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन बनते हैं। वे ही हमारे रक्त, जीन, DNA या RNA का भी रूप धारण करते हैं। 
 
एशियाई वैज्ञानिकों की एक शोध टीम ने, जापान में मित्सुज़ावा टेलिस्कोप की सहायता से, एम-87 मंदाकिनी वाले ब्लैक होल के आस-पास के परिदृश्य का अध्ययन किया। इस टीम ने पाया कि इस ब्लैक होल के पास जेट तब बनते हैं, जब उसके गुरुत्वाकर्षण से गैसों के घने बादल किसी बवंडर की तरह, प्रचंड तेज़ गति से घूमने लगते हैं।
 
इस घूर्णन से बादलों और उनके गैसीय कणों के बीच होता तीव्र घर्षण, भीषण गर्मी पैदा करता है। साथ ही बहुत ही शक्तिशाली चुंबकीय बलक्षेत्र भी बनने लगते हैं। इस सारे घटनाक्रम की बढ़ती हुई तीव्रता से जो भीषण ऊर्जा पैदा होती है, उसके अपने चरम पर पहुंचने से चुंबकीय बलक्षेत्र मानो किसी गुब्बारे की तरह फट जाते हैं। तब उनमें बंधी गैस और ऊर्जा एक जेट के रूप में अंतरिक्ष की गहराईयों की तरफ दौड़ पड़ती है। 
 
आलेख का अगला भाग : कैसा था आरंभिक ब्रह्मांड और कैसे हुई पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत?

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