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तुर्की में अब भी ज्यादातर लोग कलाम अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष सोच के समर्थक हैं। लेकिन 2003 के बाद से (अर्दोआन के सत्ता में आने के बाद से) इन लोगों के वर्चस्व तेजी से समाप्त हो रहा है। इस प्रक्रिया में टीवी सीरियल दिरलिस: एर्तरुल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
2014 से अब तक इस सीरियल के पांच सीजन प्रसारित हो चुके हैं। सबसे खास बात ये है कि इस सीरियल के निर्माता महमत बोजदाग अर्दोआन की पार्टी के सदस्य हैं।
यह टीवी सीरियल एतिहासिक तथ्यों की बजाय इस्लामिक राष्ट्रवाद और अर्दोआन की राजनीति के लिए जमीन तैयार करने के लिए बनाया गया है। यह बात टर्किश स्कॉलर सेमही सिनानोअलु ने कल्चरल जर्नरल बिरिकिम में लिखी है कि कैसे इस तरह की टीवी सिरीज़ वर्तमान राजनीतिक शासन को प्रासंगिक बनाए रखने में राजनीतिक हथियार के तौर पर काम करती है।
सेमही ने यह भी लिखा है कि ऐसे टीवी ड्रामे की लोकप्रियता से यह भी पता चलता है कि दर्शक तुर्की की वर्तमान हालात से जूझने के बदले एक फंतासी भरी दुनिया में जाना चुन रहे हैं। तुर्की की बिगड़ती आर्थिक हालत और सीरिया संकट से ध्यान हटाने के लिए ऐसे टीवी ड्रामे राजनीतिक टूल की तरह काम करते हैं।
इस सीरियल की कहानी ओटोमन साम्राज्य के संस्थापक एर्तरुल गाजी की कहानी है। इसमें जो कुछ है वो उसे सीधे शब्दों में कहा जा सकता है– इस्लाम, तलवार और खून। इसके जरिए इस्लाम का जो संदेश देने की कोशिश की गई है उसे हम आईएसआईएस के नाम से जानते हैं और उसे हम सीरिया में देख चुके हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि एर्तरुल गाजी के बारे में मुश्किल से पांच से दस पेज की जानकारी उपलब्ध है, लेकिन इस पर 484 एपिसोड का सीरियल बनाया गया है। यानी कि बहुत कुछ मनमाना है जो किसी के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है।
इसमें बताया गया है कि एर्तरुल गाजी अल्लाह के बताए रास्ते पर चल रहा है। जिसमें भयानक हिंसा है। कई बार तो सिर कलम का दृश्य देखते हुए इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों के सिर कलम की याद आ जाती है। पूरे ड्रामे में इस्लामिक श्रेष्ठता का बोध है।
पहले सीज़न के पहले एपिसोड का शुरुआती दृश्य है- तुर्क कबीलों के टेंट में लोग तलवार बना रहे हैं और उसकी धार को तेज़ कर रहे हैं। तुर्क कबीलों की ईसाइयों और बाइज़ेंटाइन से दुश्मनी है। हर लड़ाई में मारे जाने पर ईसाइयों के शव ख़ून से लथपथ बिखरे पड़े होते हैं। हीरो एर्तरुल ग़ाज़ी न केवल मामूली सिपाहियों का सिर कलम करता है बल्कि अपने कबीले के लोगों का सिर और धड़ अलग करता है।
अगर इस्लामिक स्टेट इससे प्रेरणा लेने लगे तो क्या हमें इससे हैरान होना चाहिए? क्या तलवार की महिमा गान इस्लाम की महिमा का बखान है? एक कबीलाई समाज के भीतर के सत्ता संघर्षों की तुलना में इस्लाम को निश्चित तौर पर और सकारात्मक रूप में दिखाया जा सकता है।
सबसे खास बात यह है कि बताया जा रहा है कि आमिर खान इस कहानी पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे तुर्की भी गए थे। हालांकि इस बात की अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
इस सीरियल को पाकिस्तान के टीवी पर उर्दू में डब करके दिखाया जा रहा है और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस सीरियल के बहुत बड़े फैन हैं। पिछले कुछ समय से वे इसका हवाला अपने ट्वीट्स में देते रहे हैं। पाकिस्तान में इस सीरियल की लोकप्रियता ठीक वैसी ही है जैसी भारत में रामायण और महाभारत की रही है। इसने वहां पर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह सीरियल हिन्दी में भी डब किया गया है और इसे नेटफ्लिक्स भारत लाया है।