मल से उपचार की बात सुनने में घिनौनी और चौंकाने वाली लग सकती है, लेकिन यह हकीकत है। इस पद्धति को फेकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट (एफएमटी) या मल प्रत्यारोपण के नाम से जाना जाता है।
यह तकनीक काफी फायदेमंद हैं। स्वस्थ व्यक्ति के मल में अच्छे बैक्टीरिया होते हैं जो वजन बढ़ाने में सहायक होते हैं। ये बैक्टीरिया आंतों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम भी करते हैं। यह पद्धति गैस्ट्रो से जुड़ी बीमारियों के साथ कोलाइटिस में मददगार है।
इतना ही नहीं अमेरिका में तो साल 2012 में स्टूल बैंक भी बनाया गया। ऐसा माना जाता है कि दुनिया के कई क्षेत्रों में इस तरह की परंपरा भी है कि शिशु के मुंह में एक-दो बूंद मां का मल छोड़ दिया जाता है।
फेकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट क्या है : इस तकनीक में किसी स्वस्थ व्यक्ति का मल (स्टूल) लेते हैं। बाद में उसे पानी में डिजॉल्व करते हैं और बड़ी आंत में इंजेक्ट किया जाता है। मध्यप्रेदश में कुछ साल पहले इस तरह का मामला सामने आया था। जिसमें एक महिला का वजन काफी हो गया था, लेकिन इस तकनीक को अपनाने के बाद उसकी स्थिति में तेजी से सुधार होने लगा। इस तकनीक का डायबिटीज और ओबेसिटी के मरीजों पर भी शोध किया जा रहा है।
ऐसा माना जाता है कि चौथी शताब्दी में चीन में इलाज के लिए यह पद्धति अपनाई जाती थी। उस समय इसे येलो सूप कहा जाता है। कुछ देशों में इसका एंटीबॉयोटिक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।