कहां हैं कमला हैरिस? सर्वेक्षणों में घटी लोकप्रियता

राम यादव
भारतीय मूल की कमला हैरिस जब अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनीं, तब पूरी दुनिया में उनके नाम की बड़ी गूंज थी। यह गूंज अब तिरोहित हो गई-सी लगती है!
 
अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का एक वीडियो दो साल पूर्व दुनिया में ख़ूब वायरल हुआ था। वीडियो में वे अपनी फ़िटनेस के लिए जॉगिंग करने (यानी दौड़ लगाने) के दौरान मोबाइल फ़ोन पर बड़े हर्षविभोर अंदाज़ में खिलखिलाती हुई कह रही थीं- हमने इसे कर लिया, जो! हुआ यह था कि उनकी डेमोक्रैटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन, राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए थे। उनकी जीत का सीधा-सा अर्थ यह भी था कि कमला हैरिस ही अब अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनेंगी।
 
भारत और अमेरिका सहित दुनिया में जहां कहीं भी भारतीय हैं, वे भी इस ख़बर से उतने ही हर्षित व प्रफुल्लित हुए, जितनी कमला हैरिस स्वयं हुई होंगी। ऐसा पहली बार होने जा रहा था कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में एक ऐसी महिला उपराष्ट्रपति बनेंगी, जो न केवल एक भारतीय मां की बेटी हैं, उसका नाम भी विशुद्ध भारतीय है। स्वाभाविक था कि अपनी खुशी और उत्साह में कमला हैरिस के सभी समर्थक और प्रशंसक उनसे ऐसी-ऐसी आशाएं-अपेक्षाएं करने लगे, जिन पर खरा उतरना उनके लिए तो क्या, किसी के लिए भी संभव नहीं होता।
 
कमला हैरिस का नाम ग़ायब मिलता है : समय के साथ यही देखने में आ रहा है। राष्ट्रपति जो बाइडन का नाम तो किसी न किसी बहाने से मीडिया में लगभग हर दिन छाया रहता है, पर उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम ग़ायब ही मिलता है। जब कभी किसी औपचारिक अवसर पर वे राष्ट्रपति बाइडन के साथ दिखती भी हैं, तो उनकी बगल में कुछ इस तरह खड़ी लगती हैं, मानो उनकी एक अंगरक्षक हैं।
 
अमेरिकी जनमत सर्वेक्षणों में कमला हैरिस की लोकप्रियता घटते-घटते 40 प्रतिशत पर आ गई है। इधर कुछ समय से यूरोपीय मीडिया में भी पूछा जाने लगा है, कहां हैं कमला हैरिस? उनके बारे में कुछ देखने-सुनने में क्यों नहीं आता? उनके और राष्ट्रपति बाइडन के बीच कहीं अनबन या मतभेद तो नहीं है? या बाइडन जानबूझकर उनकी उपेक्षा तो नहीं कर रहे हैं? चुनाव से पहले का सारा जोश और उत्साह आखिर कहां खो गया?
 
उपराष्ट्रपति 'राडार के नीचे' हुआ करते हैं : यह सच है कि अमेरिकी तथा विदेशी मीडिया में भी कमला हैरिस का नाम और चेहरा अब बहुत कम ही दिखता है, पर जो लोग अमेरिकी राजनीति के रंग-ढंग और मीडिया वालों के तौर-तरीकों को जानते हैं, वे उनके बहुत कम दिखाई पड़ने के कई कारण बताते हैं। उदाहरण के लिए वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में राजनीति-विज्ञान के प्रोफ़ेसर माइकल कॉर्नफ़ील्ड का एक मीडिया इंटरव्यू में कहना है कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति 'राडार के नीचे' हुआ करते हैं।
 
'राडार के नीचे' होने का अर्थ यह है कि अमेरिका में राष्ट्रपति ही सर्वेसर्वा है, इसलिए वही सबके ध्यान के केंद्र में होता है, न कि उपराष्ट्रपति। कॉर्नफ़ील्ड के शब्दों में, इस विडंबना में कमला हैरिस का कोई दोष नहीं है कि वे उपराष्ट्रपति हैं। पिछले उपराष्ट्रपतियों की तुलना में वे किसी से कमतर नहीं हैं। उन्हें बहुत अच्छा प्रेस भले ही नहीं मिल रहा है, पर वह बहुत बुरा-भला भी नहीं कह रहा है। दूसरे कई उपराष्ट्रपति तो प्रेस द्वारा खिल्ली उड़ाए जाने का प्रिय निशाना बन गए।
 
मीडिया के कैमरे बड़े नाम चाहते हैं : मीडिया वाले कमला हैरिस का मज़ाक भले ही न उड़ाते हों, पर हर गाहे-बगाहे यह प्रश्न ज़रूर उछालते रहते हैं कि कमला हैरिस आखिर हैं कहां? अमेरिका में कुछ ही समय पूर्व संसद के दोनों सदनों के लिए जो मध्यावधि चुनाव हुए थे, उनमें अपनी डेमोक्रैटिक पार्टी की विजय के लिए उन्होंने जमकर चुनाव-प्रचार किया, लेकिन मीडिया के कैमरों के फ़ोकस में बराक ओबामा या डोनाल्ड ट्रंप जैसे पिछले बड़े नाम ही रहे।
 
इस चुनाव-प्रचार के दौरान हुई टेलीविज़न चैनलों की बहसों में जब भी ट्रंप के समय उपराष्ट्रपति रहे माइकल पेन्स या वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को भी आमंत्रित किया गया तो दोनों ने ऐसे मौकों पर अपने आप को अमेरिका के अगले राष्ट्रपति के सुयोग्य दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
 
टेलीविज़न बहसों आदि में कमला हैरिस ऐसे विषयों को भी उठाती या उन पर अपना दृष्टिकोण बताती रही हैं, जो जनसमान्य को आंदोलित करते हैं। महिलाओं के लिए गर्भपात का अधिकार होना चाहिए या नहीं, यह प्रश्न अमेरिका में मध्यावधि चुनाव से ठीक पहले बहस का एक देशव्यापी मुद्दा बन गया था। वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने जून के अंत में सुनाए गए अपने एक निर्णय में कहा कि गर्भपात का अधिकार कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। ऐसा कहकर सर्वोच्च न्यायालय ने अमेरिका में पिछले 50 वर्षों से मान्य गर्भापात के अधिकार को पलट दिया। अमेरिका में इसके विरुद्ध भारी प्रदर्शन भी हुए।
 
न्यायालय की न्यायनिष्ठा चिंता का विषय : अमेरिकी टेलीविज़न चैनल NBC के साथ एक इंटरव्यू में इस निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कमला हैरिस ने कहा कि उन्हें तो न्यायालय की न्यायनिष्ठा ही चिंता का विषय लगने लगी है, लेकिन उनकी इस बात पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया। इससे पहले, राष्ट्रपति जो बाइडन ने उन्हें दो बड़े काम सौंपे थे। एक था, मध्य अमेरिकी ग़रीब देशों से भारी संख्या में आ रहे लोगों की रोकथाम के उपाय करना, और दूसरा था, चुनाव प्रक्रिया वाले क़ानून में सुधार के सुझाव देना।
 
अमेरिकी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि ये दोनों कार्य ऐसे थे, जिनसे कोई वाहवाही नहीं मिल सकती थी। राष्ट्रपति बाइडन यदि दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव नहीं लड़ना चाहें, तो कमला हैरिस को कुछ करने के जो गिने-चुने मौके उन्होंने अब तक दिए हैं, वे ऐसे नहीं रहे हैं कि उनके माध्यम से वे अपना नाम चमका पातीं। अपनी प्रतिभा और कुशलता का पूरा परिचय दे पातीं। यह संदेह भी बहुत से लोगों को है कि हो सकता है, राष्ट्रपति बाइडन चाहते ही नहीं हों कि कमला हैरिस का नाम चमके और वे उनकी प्रतिद्वंद्वी बनें।
कमला हैरिस का समय अभी आएगा : प्रोफ़ेसर कॉर्नफ़ील्ड मानते हैं कि कमला हैरिस का समय अभी आएगा। डेमोक्रैट उनसे घृणा नहीं करते, लेकिन हैरिस के पास 'डींग मारने' के लिए भी कुछ नहीं है। चार अन्य डेमोक्रैटों के पास अगली बार बेहतर संभावनाएं होंगी परिवहन मंत्री पीट बटिगिएग, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजॉम के पास।
 
प्रोफ़ेसर कॉर्नफ़ील्ड के अनुसार, कमला हैरिस 2028 या 2032 में डेमोक्रैटिक पार्टी की शीर्ष उम्मीदवार हो सकती हैं। उन्हें धीरज रखना होगा। उनके पास अभी भी समय है। बाइडन यदि एक बार फिर चुनाव लड़ते और जीतते हैं, तो तब तक 58 वर्ष की हो चुकीं कमला हैरिस भी एक बार फिर उपराष्ट्रपति बन सकती हैं। कॉर्नफ़ील्ड का कहना है कि बाइडन ने 2020 का चुनाव मुख्यतः अश्वेत मतदाताओं के समर्थन से जीता था। उनके लिए हैरिस की अनदेखी करना राजनीतिक आत्महत्या होगी।

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