Nobel Peace Prize and Donald Trump: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार सार्वजनिक रूप से नोबेल शांति पुरस्कार की मांग कर चुके हैं। 'चापलूस' पाकिस्तान भी उनके लिए नोबेल पुरस्कार की मांग कर चुका है। हालांकि देखा जाए तो ऐसा कोई भी कारण नहीं बनता कि डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाए। अगले कुछ दिनों में संभवत: शुक्रवार को ओस्लो में स्थित नॉर्वेजियन नोबेल समिति दुनिया के इस शीर्ष पुरस्कार के लिए नाम की घोषणा कर सकती है। इसके साथ ही लंबे समय चला आ रहा सस्पेंस भी खत्म हो जाएगा।
डोनाल्ड ट्रंप खुद को शांति दूत के रूप में पेश कर चुके हैं। वे कई बार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कह चुके हैं कि नोबेल शांति पुरस्कार उन्हें ही मिलना चाहिए। दरअसल, ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार न दिए जाने के पीछे कई कारण हैं, जो उनके कार्यकाल की नीतियों और उनके सार्वजनिक आचरण से जुड़े हुए हैं। ट्रंप लगातार झूठ बोलते रहे हैं कि उन्होंने 7 युद्ध रोकने में अहम भूमिका निभाई है। भारत-पाक युद्ध को रोकने का दावा भी वे 30 से ज्यादा बार कर चुके हैं। उनके इस दावे को पाकिस्तान ने तो स्वीकार किया, लेकिन भारत ने कभी नहीं माना।
मापदंडों पर खरे नहीं उतरते ट्रंप : नोबेल शांति पुरस्कार अंतरराष्ट्रीय भाईचारे, निरस्त्रीकरण और शांति को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति को दिया जाता है। ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' की नीति को अक्सर अंतरराष्ट्रीय सहयोग से हटने और एकतरफा कार्रवाई करने के रूप में देखा जाता है, जो नोबेल पुरस्कार के मूल आदर्शों के विपरीत है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन जैसी संस्थाओं की लगातार आलोचना की और कई महत्वपूर्ण समझौतों- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता और ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया।
ट्रंप के झूठे दावे : ट्रंप लगातार झूठा दावा करते रहे हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान सहित सात अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को समाप्त करवाया है या रोकने में भूमिका निभाई है। दूसरी ओर, विशेषज्ञों का मानना है कि उनके ये दावे विरोधाभासी और भ्रामक हैं। उन्होंने वास्तव में शांति स्थापित करने लिए कोई बड़ा काम नहीं किया है, जिसके लिए नोबेल दिया जा सके। वे दावों के विपरीत रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध नहीं रोक पाए, इजराइल को गाजा पर हमले से नहीं रोक पाए। उनके ज्यादातर दावों की हवा निकल चुकी है। हालांकि पश्चिम एशिया में अब्राहम समझौते को उनका एक सकारात्मक कदम माना गया है, लेकिन आलोचकों का तर्क है कि यह पुरस्कार जीतने के लिए पर्याप्त नहीं है।
ट्रंप ने बार-बार और खुलेआम नोबेल शांति पुरस्कार की इच्छा जताई है। वे यहां तक कह चुके हैं कि अगर उन्हें यह सम्मान नहीं मिलता है तो यह 'अमेरिका का अपमान' होगा। वहीं, आलोचकों का मानना है कि नोबेल पुरस्कार निस्वार्थ प्रयासों का सम्मान है, इसे पाने के लिए इस तरह की आत्म-प्रचार वाली 'जिद' पुरस्कार की गरिमा के खिलाफ है।
व्यापार युद्ध को बढ़ावा : उन्होंने सहयोगी और दुश्मन देशों के खिलाफ एकतरफा टैरिफ लगाकर व्यापार युद्ध शुरू किया, जिसने वैश्विक व्यापार और खुले व्यापार की नीतियों को नुकसान पहुंचाया। भारत को दोस्त कहने वाले ट्रंप ने 100 फीसदी टैरिफ थोप दिया। इतना ही नहीं आतंकवाद के समर्थक देश पाकिस्तान का वे लगातार समर्थन कर रहे हैं। दरअसल, ट्रंप की नीतियां और व्यवहार अक्सर इसके विपरीत दिखाई देते हैं, जिससे उन्हें इस पुरस्कार का हकदार नहीं माना जा सकता।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala