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ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा कहां से निकलकर कहां तक जाती है?

WD Feature Desk
शुक्रवार, 13 जून 2025 (14:17 IST)
Jagannath Rath Yatra 2025: हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार जगन्नाथ यात्रा 27 जून शुक्रवार 2025 को निकलेगी। मान्यता है कि जो भी भक्त इस शुभ रथयात्रा में सम्मिलित हो होकर रथ खींचते हैं उन्हें 100 यज्ञों के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचने को लेकर कोई भी नियम नहीं है। किसी भी धर्म, जाति, प्रांत या देश का व्यक्ति रख खींच सकता है। इसे कोई भी भक्त खींच सकता है। क्रम से सभी रथ की रस्सी को खींचते हैं। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने वाला जीवन काल के चक्र से मुक्त हो जाता है। ALSO READ: अविवाहित प्रेमी जोड़े क्यों नहीं जा सकते हैं जगन्नाथ मंदिर?
 
कहां से कहां तक निकलती है रथयात्रा: तीनों रथों को मोटी रस्सियों से खींचकर 4 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता है। रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडिचा मंदिर पहुंचती है। सभी को कुछ कदमों तक ही रथ खिंचने दिया जाता है।
 
हिंदुओं के चार धामों में से एक पुरी में कहते हैं कि इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ साल में एक बार प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर में जाते हैं। इसके 18 दिन पहले भगवान को स्नान कराया जाता है जिसे स्नान यात्रा कहते हैं जिसमें भगवान बीमार पड़ जाते हैं। तब उन्हें औषधि का भोग लगाते हैं। इसके पहले उनके तीन रथों का निर्माण दारुक नाम के वृक्ष की लकड़ी से करते हैं। एक रथ में भगवान जगन्नाथ, दूसरे में भगवान बलभद्र और तीसरे में देवी सुभद्रा विराजमान रहती हैं। भगवान के गुंडिचा मंदिर जाने से एक दिन पहले इस मंदिर को स्वच्छ किया जाता है जिसे गुंडिचा मार्जन परंपरा कहते हैं। रथयात्रा के चतुर्थ दिवस को हेरा पञ्चमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की खोज में गुंडिचा मन्दिर जाती हैं।ALSO READ: भगवान जगन्नाथ की यात्रा में जा रहे हैं तो साथ लाना ना भूलें ये चीजें, मिलेगा अपार धन और यश
 
गुंडिचा मन्दिर में आठ दिवस विश्राम करने के पश्चात दशमी के दिन भगवान जगन्नाथ पुनः अपने मुख्य निवास पर लौट आते हैं। इस दिवस को बहुदा यात्रा अथवा वापसी यात्रा के रूप में जाना जाता है। यात्रा के बीच एक छोटे से पड़ाव पर भगवान रुकते हैं जिसे मौसी माँ मन्दिर के रूप में जाना जाता है, जो कि, देवी अर्धाशिनी को समर्पित एक दिव्य स्थल है। इसके बाद देवशयनी एकादशी के पहले ही भगवान अपने धाम में पुन: लौट आते हैं। इसके बाद भगवान चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं।

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