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भगवान जगन्नाथ को पहले क्या कहते थे और किस आदिवासी जाति के वे देवता हैं?

WD Feature Desk
मंगलवार, 2 जुलाई 2024 (15:49 IST)
Jagannath Rath Yatra 2024: प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 07 जुलाई 2024 रविवार को यह रथ यात्रा निकलेगी। क्या आप जानते हैं कि भगवान जगन्नाथ को पहले किस नाम से जाना जाता था और वह किस आदिवासी जाती के कुल देवता हैं? नहीं, तो जानिए।ALSO READ: जगन्नाथ यात्रा कब से कब तक निकलेगी, जानें कैसे करें प्रभु की घर में पूजा
 
भगवान जगन्नाथ को पहले क्या कहते थे?
हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक उड़ीसा के पुरी नगर की गणना सप्तपुरियों में भी की जाती है। पुरी को मोक्ष देने वाला स्थान कहा गया है। इसे श्रीक्षेत्र, श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। पुराण के अनुसार नीलगिरि में पुरुषोत्तम हरि की पूजा की जाती है। यानी भगवान जगन्नाथ को पहले पुरुषोत्तम कहा जाता था और उसी दौर में उन्हें नीलमाधव भी कहा जाता था।
 
किस आदिवासी समाज के हैं ये कुल देवता?
पुरी के पुजारियों के अनुसार प्राचीन काल में ओडिशा को उद्र देश और पुरी को शंख क्षेत्र कहा जाता था। यह स्थान भगवान विष्णु का प्राचीन स्थान है जिसे बैकुंठ भी कहा जाता है। प्राचीनाकल में पुरी चारों और समुद्र से घिरा हुआ था जिसके बीच में नीलगिरि नामक पहाड़ पर नीलमाधव विराजमान थे। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु 'पुरुषोत्तम नीलमाधव' के रूप में अवतरित हुए और सबर नामक आदिवासी जाति के परम पूज्य देवता बन गए थे। इसी समाज के लोग इनकी दिव्य रूप में पूजा करते थे। 
 
मंदिर के होने का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है। कहा जाता है कि सबसे पहले सबर आदिवासी विश्ववसु ने नीलमाधव के रूप में इनकी पूजा की थी। आज भी पुरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें दैतापति के नाम से जाना जाता है। जो आदिवासी सबर समाज के लोग ही हैं।ALSO READ: History of Jagannath Temple : जगन्नाथ मंदिर का संपूर्ण इतिहास
 
इस मंदिर को सतयुग के सम्राट इंद्रद्युम्न ने सबर समाज की अनुमति से सबसे पहले बनवाया था। सम्राट इंद्रद्युम्न चक्रवर्ती सम्राट थे जिनकी राजधानी उज्जैन में थी। कहते हैं कि सम्राट इंद्रद्युम्न का बनवाया गया मंदिर रेत में दब गया था जिसे द्वार के अंत में निकाला गया और तब यहां पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके उन्हें जग के नाथ जगन्नाथ कहा जाने लगा।ALSO READ: jagannatha rathayatra: जगन्नाथ रथयात्रा पर जानिए प्रारंभ से लेकर अंत तक की परंपरा और रस्म

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