जब शनिदेव ने डाली हनुमानजी पर अपनी साढ़ेसाती वाली दृष्टि, तो हुआ गजब

अनिरुद्ध जोशी
कहते हैं कि सभी देवी और देवताओं पर भगवान शनिदेव ने अपनी वक्र दृष्टि डालकर उनका कुछ न कुछ बुरा किया है परंतु वे हनुमानजी के समक्ष बेबस हो गए थे और दूसरी ओर यह भी कहा जाता है कि जो हनुमानजी का परमभक्त होता है उस पर शनिदेव की वक्र दृष्टि का असर तो होता ही नहीं है साथ ही वे की भी शनि की साढ़े साती या ढैय्या के असर में भी नहीं आते हैं।
 
 
पौराणिक मान्यता अनुसार एक बार शनिदेव हनुमानजी के पास आते हैं और कहते हैं कि मैं आपको सावधान करने आया हूं कि कृष्‍ण लीला के समापन के बाद कलियुग का प्रारंभ हो चुका है। इस कलियुग में देवता धरती पर नहीं रह सकते क्योंकि जो भी धरती पर है उस पर मेरी साढ़ेसाती का असर होगा। इसलिए आप पर भी इसका प्रभाव प्रारंभ होने वाला है। इस पर हनुमानजी कहते हैं जो भी देवता या मनुष्य राम की शरण में रहता है उस पर तो काल का भी प्रभाव नहीं रहता। इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं और जाइये। इस पर शनिदेव कहते हैं कि मैं सृष्टिकर्ता के विधान के आगे विवश हूं। आपके ऊपर मेरी साढ़ेसाती अभी से प्रभावी हो रही है। इसलिए आज और अभी मैं शरीर पर आ रहा हूं इसे कोई टाल नहीं सकता।
 
तब हनुमानजी कहते हैं ठीक है आ जाइये। परंतु ये बताइये की मेरे शरीर पर कहां आ रहे हैं तो इस पर शनिदेव बढ़े गर्व से कहते हैं कि ढाई साल आपके सिर पर बैठकर आपकी बुद्धि को विचलित करूंगा, अगले ढाई साल पेट में रहकर आपके शरीर को अस्वस्थ करूंगा और अंतिम ढाई साल पैर पर रहकर आपको भटकाता रहूंगा।
 
इतना कहकर शनिदेव हनुमानजी के माथे पर बैठ गए। माथे पर बैठते ही हनुमानजी को खुजली आई तो उन्होंने एक पर्वत उठाकर अपने माथे पर रख लिया। तब उस पर्वत से दबकर घबराकर शनिदेव बोले की ये क्या कर रहे हो आप? यह सुनकर हनुमानजी ने कहा कि आप अपना काम कीजिये मुझे मेरा काम करने दीजिये। मैं अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं इसी प्रकार खुजली मिटाता हूं। ऐसा कहकर हनुमानजी एक और पर्वत अपने सिर पर रख लेते हैं। जिससे शनिदेव और दब जाते हैं और हैरान परेशान होकर कहते हैं आप इन पर्वतों को उतारिये मैं समझौता करने के लिए तैयार हूं।
 
 
हनुमानजी कुछ नहीं सुनते हैं और तीसरा बड़ा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख देते हैं। इस बोझ से शनिदेव चिल्लाने लगते हैं और कहते हैं- मुझे छोड़ दो मैं आपके कभी नजदीक भी नहीं आऊंगा। लेकिन फिर भी हनुमानजी उनकी पुकार को सुना अनसुना करके चौथा पर्वत रख देते हैं तब शनिदेव त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए हनुमानजी से प्रार्थना करते हैं मैं आप तो क्या आपके भक्तों के भी सपीम कभी नहीं आऊंगा कृपयाकर मुझे छोड़ दें।... यह सुनकर हनुमानजी शनिदेव को पीड़ा से मुक्त कर देते हैं।
 
 
हनुमान भक्त : पौराणिक मान्यता अनुसार एक बार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया। जब तक हनुमानजी लंका नहीं पहुचें तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे। जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान् शनि देव जेल में कैद मिले। हनुमानजी ने तब शनि भगवान को कैद से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद उन्होंने हनुमानजी का धन्यवाद दिया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन भी दिया। यही कारण है कि हनुमान भक्तों पर कभी भी शनिदेव की बुरी दृष्टि का असर नहीं होता है।

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