Karwa chauth mata ki katha in hindi: उत्तर भारत में सुहागन महिलाएं अपने पति की सेहत और लंबी उम्र की कामना से करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं। सूर्योदय से लेकर चंद्रमा निकलने तक व्रत रखती हैं। रात में चांद निकलने के बाद व्रत खोलती हैं। व्रत की पूजा के दौरान महिलाएं करवा चौथ माता की पौराणिक कथा सुनती हैं। करवा चौथ की 3 कथाएं प्रचलित हैं। तीनों ही कथाओं को सुनने का महत्व है। यहां तीनों कथाओं को संक्षिप्त में पढ़ें।
1. करवा की कथा (सबसे प्रसिद्ध कथा):
-यह कथा करवा चौथ के नामकरण से जुड़ी है:
-करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री थी, जो अपने पति से बहुत प्रेम करती थी।
-एक बार जब उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, तब एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया।
-करवा ने तुरंत अपनी पतिव्रता शक्ति के बल पर मगरमच्छ को एक कच्चे धागे से बांध दिया और मृत्यु के देवता यमराज को पुकारा।
-करवा ने यमराज को चेतावनी दी कि यदि उन्होंने उसके पति को जीवनदान नहीं दिया, तो वह उन्हें श्राप दे देगी।
-करवा की अटूट निष्ठा और दृढ़ संकल्प से प्रसन्न होकर यमराज ने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु प्रदान की।
-माना जाता है कि यह घटना कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हुई थी, तभी से यह व्रत करवा चौथ के नाम से प्रचलित हो गया।
यह कथा इस प्रकार भी है कि एक साहूकार के 7 बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक बार करवा चौथ के दिन उनके घर में व्रत रखा गया। रात्रि को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उससे भी भोजन करने का आग्रह किया। उसने यह कहकर मना कर दिया कि अभी चंद्रमा नहीं निकला है और वह चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। अपनी सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला- व्रत तोड़ लो वो देखो चांद निकल आया है। बहन को भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने खाने का निवाला खा लिया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। बहुत ज्यादा दुखी होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान से करवा चौथ व्रत किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया।
2. देव-दानव युद्ध की कथा:
-इस कथा के अनुसार करवा चौथ की शुरुआत देवताओं के समय में हुई थी:
-एक बार देवता और असुरों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। युद्ध में देवता लगातार पराजित हो रहे थे।
-चिंतित देव पत्नियां (देवताओं की पत्नियां) सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास गईं।
-ब्रह्मा जी ने उन्हें कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अपने पतियों की विजय और सुरक्षा के लिए कठोर उपवास रखने की सलाह दी।
-देवियों ने पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया, जिसके प्रभाव से युद्ध में देवताओं की विजय हुई।
-यह व्रत देव पत्नियों के संकल्प और पति की दीर्घायु की कामना का प्रतीक बन गया।
3. द्रौपदी की कथा (महाभारत काल):
-पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास में थे और अर्जुन तपस्या के लिए नीलगिरि पर्वत पर गए हुए थे, तो पांडवों पर कई संकट आने लगे।
-तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से अपने पतियों के कष्टों को दूर करने का उपाय पूछा।
-श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ व्रत के महत्व के बारे में बताया और विधि-पूर्वक यह व्रत करने की प्रेरणा दी।
-द्रौपदी ने यह व्रत रखा, जिसके प्रभाव से पांडवों को सभी संकटों से मुक्ति मिली।
4. देवी पार्वती की कथा
कुछ मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ व्रत की शुरुआत स्वयं देवी पार्वती ने की थी। उन्होंने भगवान शिव को अपना पति स्वीकार करने के बाद उनके दीर्घायु और अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत रखा था। शिव जी ने उनकी आस्था से प्रसन्न होकर उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था।
करवा चौथ का त्योहार मुख्य रूप से पति-पत्नी के पवित्र प्रेम, समर्पण और स्त्री के अटूट विश्वास (सतीत्व) की शक्ति का प्रतीक है। सुहागिन स्त्रियां यह व्रत अपने पति के दीर्घायु, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना के लिए निर्जला रखती हैं। यह व्रत भारतीय संस्कृति में सदियों से चली आ रही पतिव्रत धर्म की भावना को दर्शाता है।