बाल दिवस पर हिन्दी कविता...

सुशील कुमार शर्मा
तांका 9
 

 
करोड़ों नन्हे हाथ
रोटी कमाते
सिसके बाल मन।
 
अधूरा बचपन
नन्ही उमर
चाय दुकान पर।
 
धुलतीं प्लेटें
शिक्षा का अधिकार
कौन सुने पुकार।
 
ऊंची कूदनी
लुढ़का-लुड़काई
छिपा-छिपाई।
 
छुक से चले रेल
बचपन के खेल
बच्चों के स्वर।
 
शरारत के खेल
बोलती आंखें
जीवन की सौगातें।
 
बचपन की बातें
मन का बच्चा
बाहर निकलता।
 
आज के दिन
हंसता-मुस्कुराता
गीत गुनगुनाता।
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