‍बाल कविता : थाने का कारकून...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चूहेजी की रपट लिखाने, 
बिल्ली पहुंची थाने।


 

 
जगह-जगह पर खोद लिए हैं,
उसने बिल मनमाने।
 
जब भी जाती उसे पकड़ने,
बिल में घुस जाता है।
दिनभर रहती खड़ी मगर,
वह बाहर न आता है।
 
कोतवाल ने रपट अभी तक,
लिखी न मेरे भाई।
चूहे के संग मिलीभगत, 
मुझको पड़ती दिखलाई।
 
रोटी के कुछ टुकड़े चूहा,
थाने भिजवाता है।
थाने का हर कारकून,
मिलकर टुकड़े खाता है। 

 
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