बाल गीत : छूना है सूरज के कान

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
तीन साल के गुल्लू राजा,
हैं कितने दिलदार दबंग।
 
जब रोना चालू करते हैं,
रोते रहते बुक्का फाड़।
 
उन्हें देखकर मुस्काते हैं,
आंगन के पौधे और झाड़।
 
जब मरजी कपड़ों में रहते,
जब जी चाहे रहें निहंग।
 
नहीं चांद से डरते हैं वे,
तारों की तो क्या औकात।
 
डांट डपट कर कह देते हैं,
नहीं आपसे करते बात।
 
जब चाहे जब कर देते हैं,
घर की लोकसभाएं भंग।
 
आज सुबह से मचल गए हैं,
छूना है सूरज के कान।
 
चके लगाकर सूरज के घर,
पापा लेकर चलो मकान।
 
दादा दादी मम्मी को भी,
ले जाएंगे अपने संग।

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