Makar Sankranti Poem : कटती डोर, दुखता मन

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'
मैं पतंग हूं  Main Patang Hun 
आकाश में उड़तीं
रंग-बिरंगी पतंगें
करती न कभी
किसी से भेदभाव।
 
जब उड़ नहीं पाती
किसी की पतंगें तो
देते मौन हवाओं को
अकारणभरा दोष।
 
मायूस होकर
बदल देते दूसरी पतंग
भरोसा कहां रह गया?
 
पतंग क्या चीज
बस हवा के भरोसे।
 
जिंदगी हो इंसान की
आकाश और जमीन के
अंतराल को पतंग से
अभिमानभरी निगाहों से
नापता इंसान।
 
और खेलता होड़ के
दांव-पेज धागों से
कटती डोर दुखता मन।
 
पतंग किससे कहे
उलझे हुए
जिंदगी के धागे सुलझने में
उम्र बीत जाती
निगाहें कमजोर हो जाती।
 
कटी पतंग
लेती फिर से इम्तिहान
जो कट के
आ जाती पास हौसला देने।
 
हवा और तुमसे ही
मैं रहती जीवित
उड़ाओ मुझे?
 
मैं पतंग हूं उड़ना जानती
तुम्हारे कांपते हाथों से
नई उमंग के साथ
तुमने मुझे
आशाओं की डोर से बांध रखा।
 
दुनिया को ऊंचाइयों का
अंतर बताने उड़ रही हूं
खुले आकाश में
क्योंकि एक पतंग जो हूं
जो कभी भी कट सकती
तुम्हारे हौसला खोने पर।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

चेहरे को हफ्ते में कितनी बार स्क्रब करना होता है सेफ? जानें स्क्रब करने का सही तरीका

डेट पर जमाना है अपना इम्प्रेशन तो ये 5 Casual Trouser करें ट्राई

महेंद्र सिंह धोनी का ये 1 घंटे वाला फिटनेस मंत्र दे सकता है आपको Workout Motivation

जज्बे को सलाम! बीमारी के बाद काटने पड़े हाथ-पांव, फिर भी संसद पहुंचे, लड़ना चाहते हैं चुनाव

पुरुष गर्मी में चेहरे को तरोताज़ा रखने के लिए ट्राई करें ये 4 आसान फेस पैक

वेक-अप स्ट्रोक क्या है? जानें किन लोगों में रहता है इसका खतरा और बचाव के उपाय

बच्चे के लिए खरीद रहे हैं पैकेट वाले बेबी फूड्स तो लेबल पर पढ़ लें ये चीजें

शिशु की नाजुक स्किन को लेकर पीढ़ियों से सुनी जा रही ये बातें मिथक हैं या सच्चाई

जाह्नवी कपूर के इन 3 Stylish Blouse Design से अपनी साड़ी को दें नया लुक!

27 मई : पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि, जानें 5 अनसुनी बातें

अगला लेख